रविवार, 4 मार्च 2012

लिखना


निर्देशक की डायरी २५  
लिखना
                                                                   डॉ अनुपम 
लिखना मेरी मजदूरी है, इसके लिए किसी प्रेरणा की कभी आवश्यकता नहीं हुई. ज्यादातर मै आत्म प्रेरणा से लिखता हूँ. मै कहानियों को, विचारों को, स्क्रिप्टों को वर्षों मन ही मन गुनता रहता हूँ. नोट्स लेता रहता हूँ और एक बैठक में लिख डालता हूँ एक दिन लगे या २१ दिन.यथार्थ ये है की मै अनुकूल परिस्थितियों का इन्तजार करता हूँ. कई बार फिल्मडम की महत्वकांक्षी प्रेरणाएं उनका अबोर्शन करा सकती हैं.
 दूसरी प्रक्रिया जो मै अपनाता हूँ, वह है हर रोज एक खास समय तक चार या पांच पेज लिखना, कुछ समय बाद किताब हाथ में होती है.

"एन्जॉय दिज सीक्रेट्स ऑफ़ राईटिंग.
दो फेसबुक स्टेटस -
'हाजी अली जाने के समुद्र पथ में संसार के सबसे डिजाइनर भीखारी दीखते हैं. बनारस के संकट मोचन के भीखारी उनके सामने गिनती में नहीं आते लेकिन दशाश्वमेध से ज्यादा दयनीय भीखारी विश्व में नहीं मिलेंगे. भारत में भीख व्यवसाय को स्वीकृति है. उत्तम खेती, माध्यम बनिज, अधम चाकरी, भीख निदान. हमारे यहाँ निदान पर ही ज्यादा ध्यान दिया गया है.'
'स्थान विशेष में वस्तु विशेष नहीं हो तो सूअरों को न्योता नहीं देना चाहिए.' श्रीलाल शुक्ल, राग दरबारी. भोजपुरी के जिस मुहावरे का यह हिंदी संस्करण शुक्ल जी ने किया है, उसको आप जानना चाहेंगे? आपकी सुरुचि को धक्का तो नहीं न लगेगा? "गांड़ी में गुह न सूअर के नेवता". यानि 'स्थान विशेष में वस्तु विशेष नहीं हो' तो किसी को आमंत्रित नहीं करना चाहिए. इससे उसका अपमान होता है. समय ख़राब होता है. उसका पैटर्न ऑफ़ लाइफ बिगड़ता है. जी, जनाब.

1 टिप्पणी:

ekal !!! ek awaaz ने कहा…

uttam nahi ati uttam ... agar kisi ko bhasha ya shabd se aaptti hoto main un sajjan s ekahana chaungaa ki
"agar aap mujhe pasand karete hai to HATH khada kar de agar nahi to koi baat nahi :)"