शनिवार, 12 नवंबर 2011

यों ही याद आ गई डॉ. देव की ये नज्म -


यों ही याद आ गई डॉ. देव की ये नज्म - 

जिन्हें जमीन में फ़न बोने हैं 
उनको अश्कों से हाथ धोने हैं.
जिनको उड़ने का चाव होता है
उनके सीने में घाव होता है. 

आसमानों में जिनका घर होगा 
उनको ही टूटने का डर होगा
बसेरा छूट  गया है साथी !
वो बिना शक हरा शजर होगा .

और अब सामने वीराना है
कोई ठहराव न ठिकाना है
चंद पलाश के पत्तों के सहारे तुमको 
अपनी उम्मीद के घर जाना है.

जिन्हें जमीन में फ़न बोने हैं 
उनको अश्कों से हाथ धोने हैं

(डॉ. देव की एक नज्म से साभार )