बुधवार, 18 जनवरी 2012

मित्र मंडली से मशवरा -



बहुत सुंदर रचना है तो मै इसे अपने मित्रों को कहाँ सुनाऊं, ब्लॉग या फेसबुक से बेहतर क्या होगा..

डॉ. अनुपम 
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हर सम्बन्ध का स्थाई भाव है मैत्री. मैत्री में निर्भयता है निर्भरता नहीं. प्रेम है 'ब्योपार' नहीं इसलिए गंभीरता से मै कुछ मशवरा करना चाहता हूँ. मुझे कुछ लेखकों ने चेताया की वे अपनी रचनाएँ प्रकाशन के लिए भेजने के बाद ही कभी कभार फेसबुक पर पोस्ट करते हैं. यानि फेसबुक को वे एक सोशल नेट्वोर्किंग मीडिया न मानकर एक फीलर या प्रचार माध्यम मानते हैं. वे चोरी के विषय में भी चेता रहे थे. हिंदी के लेखक तकनिकी विषयों में अरुचि के भी शिकार होते हैं .
लेकिन मैंने फेसबुक और ब्लॉगिंग को बहुत गंभीर माध्यम के रूप में अपनाया है. मै अपने परिहास में भी स्तरीय हूँ. अक्सर चोरों को ही चोरी के विरुद्ध बोलते सुना है. जानकारी के लिए बता दूँ कि  फेसबुक या ब्लॉग पर आपकी रचना प्रकाशित होते ही वह स्वतः उस तारीख और समय में दर्ज हो जाती है, रजिस्टर्ड हो जाती है. 
कवितायें, रचनाएँ या विचारों को खुलकर शेयर करिए . दूर, सुदूर संवाद, सहयोग, सम्बन्ध और ब्यापार के इस महा वरदान का जमकर लाभ उठाइए.
किताब छपे, पत्रिकाओं में कवितायें छापें, अखबारों में साहित्य को जगह मिले और ब्लॉग , टीवी , फेसबुक पर भी गंभीर साहित्य छपे, गोष्ठियां हो, सेमीनार हो.
 'ब्योपरियों' ने भी रंगदार चोले पहन लिए हैं तो क्या कहते हैं आप? 

 




एक ताज़ा रचना


एक ताज़ा रचना 
                                                अनुपम 
नटवर तेरी गैया 
खा गई मेरा गल्ला .

आधा ले गया लल्ला 
बाकी ले गया दल्ला 
जो कुछ बचा खुचा था 
सो कुछ यहीं रखा था .

उसमे कुछ उसका था
उसमे कुछ अपना था 
अपनेमे सपना था 
सपने में था सैंया .

कबसे ही उखड़ा है
 दरवाजे का पल्ला 
एक नहीं कपड़ा है 
सात बरस का लल्ला,

सुनलो जसुमति मैया 
सुन लो नटवर लल्ला 
सब खा गई तेरी गैया 
क्या खाए मेरा लल्ला .

नटवर तेरी गैया 
खा गई मेरा गल्ला .
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एक ताज़ा विचार - अगर आपको लगे कि आप किसी को प्रेम कर रहे हैं या आपको कोई प्रेम कर रहा है तो पूछ लीजिये, कह लीजिये. अगर हाँ तो हाँ, न तो ना . मित्रता बची रहेगी. यही स्वाभाविक है भावो को स्पष्ट कर लेना. भावों को दबा देना ठीक नहीं. शुभ दिन.