मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

सपनों को गर्माहट देने में मददगार है बम्बई .

सपनों को गर्माहट देने में मददगार है बम्बई ...
जब सारा नगर सो गया था
मै अँधेरे से आँखें मिलाये जाग रहा था
अँधेरा मेरे कमरे में उजाला उलीच रहा था
सोये हुये नगर में मेरा कमरा रेल की भट्ठी बना हुआ था
जैसे की दुनिया के और भी नगरों में कवियों की आँखें
जागती आँखें
नींद की प्रहरी बनी होंगी ;
मै जाग रहा था
और जाग रही थी बम्बई .

करोडो-करोड़ लोगों को रोजी देने वाली ओ बम्बई !
तुम्हारी अभ्यर्थना में मैं चारण - कवि हो जाना चाहता हूँ!
क्यों नहीं ये पूरा देश तुम्हारी तरह कर्मशील हो जाता ?
क्यों नहीं तुम लोकल रेलवे लाइनों का जाल फैलाकर पूरे देश में फ़ैल जाती हो ?

मेरे सवाल पर मुस्कुराकर सर हिलाती है
 कल की तैयारी करती बम्बई ...