शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

Hindi mein Cinema sahitya हिंदी में सिनेमा-साहित्य

हिंदी में सिनेमा-साहित्य
मेरे एक पाठक ने मुझसे पूछा की क्या मेरा सिनेमा से मोहभंग हो गया है?
सिनेमा से मुझे मोह नहीं मोहब्बत है और अब मै इसे इतना जानता हूँ जितना कोई प्रेमी  अपनी प्रेयसी को जानता होगा और मै सिनेमा को हिंदी में सहज उपलब्ध करा देना चाहता हूँ.
किसी भी भाषा का पंद्रह प्रतिशत कविता, कहानी, उपन्यास आदि होता है.बाकि के पचासी प्रतिशत में विभिन्न विषयों पर सामग्री होती है लेकिन हिंदी में पंचानबे प्रतिशत रचनात्मक साहित्य है और पाँच प्रतिशत में बाकी विषयों पर कुछ मिल जायेगा. विज्ञान विषयों, तकनीकी विषयों, दर्शन और मनो विज्ञान आदि को छोड़ दें तो भी कला विज्ञान में भी आपको ढंग का कुछ नहीं मिलेगा. चित्रकला, मूर्तिकला, नाटक, सिनेमा, संगीत(शास्त्रीय या लोक नहीं फिल्म संगीत ) आदि के तकनीकी पहलू पर शायद ही कुछ हो. सिनेमा साहित्य के नाम पर आपको सबसे ज्यादा रिव्यू मिलेगा. फिल्म निर्देशन,पटकथा, अभिनय, सिनेमैटोग्राफी, कला निर्देशन, सिनेमा का ग्रामर, फॉर्म, प्रकाश आदि पर कुछ भी नहीं है. जो न के बराबर है वह किसी काम  का नहीं है. जो सार्थक है वह पुराना हो चुका है. मनोहरश्याम  जोशी के पहल करने के बाद पटकथा पर कुछ किताबें मिल जायेंगी लेकिन वे भी सिर्फ शुरूआती महत्त्व की हैं. भगवती चरण वर्मा ने अपनी एक पटकथा प्रकाशित की थी जिसमें लगभग सौ पृष्ठ सिनेमा के बारे में लिखा है. वह एकमात्र गंभीर काम है जो अब काफी पुराना हो चुका है लेकिन आज भी सार्थक है . सिनेमा का अगर हिन्दीकरण करना है तो सिनेमा साहित्य का भी हिन्दीकरण करना होगा. बंगाल में इसलिए बेहतर सिनेमा उपलब्ध हो सका क्योंकि फिल्मकारों ने सिनेमा बनाने के साथ सिनेमा साहित्य भी लिखा. अपने अनुभव बांटे. हिदी में उपलब्ध सिनेमा साहित्य सिर्फ नैतिकता की पीड़ा से कुंठित पाठकों को 'गुदुराने' के काम आता है. सिनेमा-कर्मियों, प्रेमियों, छात्रों या दर्शकों को दिशा निर्देश देने में इनकी कोई भूमिका नहीं. क्या नहीं लगता की बहुत काम है जो प्रकाशकों और लेखकों के सहयोग के बिना नहीं किया जा सकता ?
१९१० में हैकल की किताब रिडल ऑफ़ यूनिवर्स छपी थी जो उस समय विज्ञान की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक मानी गई  और १९२० में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसका अनुवाद कर दिया था. पिछले सौ से भी ज्यादा साल में विश्व सिनेमा साहित्य एक-एक विषय पर अनेक ग्रंथों से 'चरचरा' रहा है और हम अब भी जज की कुर्सी  पर बैठकर अच्छे बुरे का फैसला करने में लगे हैं !
भारतीय सिनेमा पर सबसे अच्छा लेखन गैस्टन रोबर्ज़ ने किया है लेकिन वह भी अंगरेजी में है और सामान्यतया अंगरेजी- भीरु हिंदी पाठक के किसी काम नहीं आता. ऐसे में मैं हर फिल्म प्रेमी लेखक और फिल्म कर्मी से आग्रह करूँगा की कम से कम एक पहलू पर एक सार्थक किताब अनुदित या सृजित कर के इस अभियान को आगे बढ़ाये.
 भारतीय सिने- सिद्धांत  जब प्रकाशित हुई थी तब हिंदी में सिनेमा पर सिर्फ छः किताबें थीं. अब सौ के करीब है. ये अलग बात है की अधिकतर रिव्यू, संस्मरण या इतिहास से ही सम्बंधित है.जिसमें से अधिकांश   फिल्म आलोचना के सिद्द्धान्तों पर खरा नहीं उतरता है.
सत्यजित राय के शब्दों में फिल्म आलोचना का काम दर्शक और सिनेमा के बीच पुल बनाना है. न्याय कर्ता की जगह विश्लेषक की भूमिका ही सही है. विश्लेषण करने के लिए रिव्युअर के पास निर्देशक की नजर  होना जरूरी है. हिंदी में ऐसे गिने चुने लेखक हैं.






तीज पर्व, गणेशोत्सव और ईद की शुभकामनायें !

तू नेक मन से टेक घुटने और सर झुका 
फिर भी खुदा मिल न सके तब मुझे बता .
वो शिव हो शारदा हो अल्लमह  खुदा हो
दिल से उनको सुन, दिल की उन्हें सुना .