रविवार, 8 अगस्त 2010

छिनाल या छिनार का अर्थ होता है कुलटा, बदकार,पुंश्चली,व्यभिचारी.यह एक स्त्रीलिंग शब्द है जो छिः नार अर्थात स्त्री को पुरुषों के बनाये नियमों का उल्लंघन करने पर उसे तिरस्कृत करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था, है

छिनाल या छिनार का अर्थ होता है कुलटा, बदकार,पुंश्चली,व्यभिचारी.यह एक स्त्रीलिंग शब्द है जो छिः नार अर्थात स्त्री को पुरुषों के बनाये नियमों का उल्लंघन  करने पर उसे तिरस्कृत करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था, है  . यह अत्यंत प्रभावकारी है और क्षण मात्र में स्त्रियों को अपमानित करने में सर्वथा समर्थ है.
यह शब्द पुरुषों की खीज से प्रसवित हुआ है. यह दिमाग की खाज का बायोप्रोद्क्त है.
अब ध्यान देना चाहिए की चोर और छिनाल शब्द एक साथ प्रयुक्त होते हैं बिलकुल चोली-दामन की तरह . ये ब्राह्मणवादी नजरिये से शूद्र शब्द हैं. इनका प्रयोग दमित,दलित या निचले वर्गों के लिए किया जाता रहा है. कृष्ण को छोड़कर किसी भी उदात्त चरित्र के वर्णन के लिए चोर-छिनाल शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है और कृष्ण के साथ ये शब्द निर्भीक हैं.
 इन शब्दों का अर्थ क्या है -- चोरी का मतलब है कोई वस्तु जो आपके पास नहीं है और आप दूसरे की इज़ाज़त के बिना उसे हस्तगत कर लेते है. छिनाल का अर्थ है अपनी कामुकता को स्वीकार करने वाली स्त्री . यह शब्द ऐसे पुरुषों के लिए भी प्रयुक्त होता है और कृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ .
अब देखा जाये तो मानव-शरीर में दो  अंग सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं - दिमाग और लिंग.दोनों नंबर एक है. पेट और गुर्दा और दिल आदि दो नंबर पर हैं. हाथ पाँव आदि तीसरे नंबर पर आते हैं.
किसी भी उदात्त चरित्र के वर्णन में कुछ निश्चित शब्दों का प्रयोग होता है -- वे धैर्यवान, वीर्यवान और शौर्यवान थे. धैर्य का सम्बन्ध दिमाग से , शौर्य का सम्बन्ध बहुबल से और वीर्य का सम्बन्ध लिंग से है. मुझे ये धैर्यवान और शौर्यवान समझ में आता है लेकिन  वीर्यवान नहीं समझ में आता . क्या किसी के पास सौ दो सौ लीटर वीर्य हो सकता है ? खैर !
 पुरुष की कामुकता को उसके शौर्य का अनिवार्य अंग मन जाता रहा है लेकिन स्त्रियों को उनके अस्तित्व को स्वीकार करने से वंचित किया जाता रहा है. आखिर क्यों? खाने, पीने, सोने और हगने - मूतने की तरह सेक्स भी शरीर का अनिवार्य फंक्शन है और सभी जीव जंतुओं में समान है . भारत को छोड़कर कही भी इतने सारे नैतिक  नियम कानून   सेक्स के आसपास नहीं मिलेंगे.
खासतौर से हिंदी साहित्य तो सामंतशाही और आधुनिकता के पाखंड में लिथड़ा पड़ा है.
 सिगरेट पीती हुई औरत को देखकर हिंदी का लेखक चौक जाता है. मर्दों की पसंदीदा गलियां देती किसी औरत को देखकर हिंदी के लेखक का हार्ट फेल हो सकता है. वह अब भी गहनों से लदी-फदी घूंघट की आड़ में छुई-मुई नार को खोज रहा है जिसे अपनी कामुकता का शिकार बनाने के बाद उसे छिनार कह सके .
छिः.......

vichar

उस शब्द को दुनिया में ले आना सही नहीं जो आपके दिल से होकर नहीं गुजरा हो. लेखक को अपने शब्दों और वचनों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए. रसूल हमजातोव