सोमवार, 18 जुलाई 2011

यशपाल शर्मा यानि अभिनय का एक अलग आयाम

यशपाल शर्मा ने जितना काम किया है उतना क्रेडिट नहीं मिला है. गंगाजल फिल्म से प्रकाश झा की वापसी होती है. फिल्म में जबतक यशपाल शर्मा नहीं आते हैं तबतक ऐसा लग रहा है की फिल्म बिहार को पकड़ने की कोशिश कर रही हुई. यशपाल शर्मा के आते ही बिहार उपस्थित हो जाता है. पूरी फिल्म में सिर्फ यशाप्ल शर्मा ही सहजात से एक बिहारी चरित्र दीखते हैं और किसी पत्रकार का ध्यान भी नहीं जाता कि गंगाजल फिल्म पूरी तरह यशपाल शर्मा के कंधो पर चलती है. गंगाजल ही क्यों अपहरण भी. उन चरित्रों से यशपाल शर्मा को हटाकर किसी भी एक्टर को रख कर कल्पना करिये; दोनों फिल्मे धराशाई हो जाती नजर आएँगी.
 क्या आप लगान में यशपाल शर्मा की भूमिका को भूल सकते हैं ? एक तरफ सभी सकारात्मक चरित्र और एकमात्र ग्रे चरित्र यशपाल शर्माl के हिस्से. लगान में एक्टिंग के धरातल पर एक टीम में रघुबीर यादव, आमिर खान से लेकर सब के सब राजा तक एक पोजिटिव पात्र है और दूसरी तरफ एक अकेला यशपाल शर्मा एक काले चरित्र के उजाले से सबको रोशन करता हुआ.
अब तक छप्पन और में नाना जैसे ओरिजिनली अक्खड़ अभिनेता के सामने यशपाल शर्मा अपनी स्थिर आत्मशक्ति से अभिनय का लोहा मनवाने में कामयाब होते हैं. लेकिन न जाने क्यों मीडिया को खासतौर से टीवी न्यूज़ मीडिया को सिर्फ सस्ती चीजें ही दिखती हैं.
यशपाल शर्मा के एक्टिंग पॉवर में मुझे बलराज साहनी, अशोक कुमार, मोतीलाल की ताक़त नजर आती है.यशपाल शर्मा अपनी सहजता की शक्ति से अपने समकालीनों में सबसे जुदा हैं.अशोक कुमार कहते हैं की मै अभिनय करता नहीं हूँ,हो जाता है.यह कवि ह्रदय कलाकार ही कह सकता है.और यशपाल शर्मा भी ऐसे ही हैं - पोएट ऑफ़ एक्टिंग!


यशपाल शर्मा किसी भी चरित्र में सहजता से उतरने और अपने रंग में रंग देने की शक्ति से ब्लेस्ड हैं.

यशपाल शर्मा की जिम्मेवारी बनती है की वे पोजिटिव चरित्रों को भी निभाएं. खासतौर से बिहार के खल चरित्रों को ऐसी सचाई के साथ उकेरने के बाद उनको वहां के सद चरित्रों को भी अपने रंग में रंगना चाहिए. 
आनेवाले समय में हम उन्हें बहुरंगी चरित्रों में देखने की उम्मीद करते हैं.