शनिवार, 19 नवंबर 2011

एक और कविता


एक और कविता 
                                                                                                  अनुपम                                                                                                
मैंने तुम्हे जल की तरह
अपनी आँखों में भर लिया .

सितार के सभी तार सुर में कर लिए 
मैंने तुम्हे अबीर रंग की तरह 
अपनी आँखों में भर लिया
तुम्हारी आवाज को स्वरों की तरह 
 कंठ से लगा लिया है.

गीत सुनाने से ठीक पहले एक आखिरी नजर 
मै साज और समाज को देखता हूँ 

सब सही है 
तानपूरा और तान, सब सही है!

तब मैंने तुम्हे अपनी आँखों में भंग की तरह भर लिया 
गुलाल की तरह तुम्हे दिशाओं में उछाल दिया
और समूचा आसमान 
अपनी आँखों में भर लिया

मैंने देह को अदेह कर दिया.

मैंने तो खुद की सुनी.
तुमने सुना?
और आपने बन्धु!

मेरे बन्धु!

लहसुन का पेड़ एक कवि समय है.

निर्देशक की डायरी १८  

लहसुन का पेड़ एक कवि समय है.


अनुपम 


मुह है तो मुहावरा है - कवि आभा बोधिसत्व की इस उक्ति से मै सहमत हूँ.

 कवि समय उन मुहावरों या उक्तियों को कहते हैं जो कविता के भीतर सत्य मानी जाती हैं. जैसे मानसरोवर में हंसों का मोती चुगना, यमुना में कमल का खिलना आदि. ये 

यथार्थ नहीं हैं लेकिन कविता को अर्थ देने में सहयोगी हैं. भाषा के दायरे में ये यथार्थ हैं.

लहसुन का पेड़ भी एक कवि समय माना जा सकता है. क्योंकि 'लहसुन का पेड़' नहीं होता जड़ होती है लेकिन निरर्थक व्यक्ति या बात के लिए आजकल ये मुहावरा प्रचलन  में है .

पिछले डेढ़ दशक से 'बहन जी का ......' भी एक मुहावरे के रूप में प्रयुक्त हो रहा है, इसका प्रयोग चमचा टाइप लोगों के लिए होता है.


उसी तरह 'चूतियम सल्फेट' भी एक नया मुहावरा है. सुनकर लगता है की किसी रसायन का नाम है. लेकिन ऐसा कोई रसायन होता ही नहीं.बिना मतलब के लोगों के 
लिए इसका प्रयोग किया जाता है या फिर विशेष लोगों के लिए.

 

आप भी कुछ नए मुहावरे बताइये.