रविवार, 8 जुलाई 2012

MAINE LAAKHON KE BOL SAHE (DADRA): 1.


वर्तमान समय और आलोचना 

साहित्य हो या सिनेमा इस वक़्त किसी की आलोचना करना ठीक नहीं माना जा रहा है. वस्तुतः इस वक़्त हर कला और हर कलाकार बाजार में खड़ा है. आपकी वस्तुगत आलोचना उसका बाजार बिगाड़ सकती है.  इसका असर साहित्य और सिनेमा के हक़ में नहीं है. आलोचना रचनाकार को और बेहतर लिखने या रचने के लिए प्रेरित करती है. लेकिन आलोचना को लेखक और निर्देशक बहुत व्यक्तिगत स्तर पर ले रहे हैं. प्रतिउत्तर देने की जगह प्रतिक्रिया कर रहे हैं. ऐसे में दुष्यंत कुमार का यह शेर सामयिक हो जाता है -
मत कहो आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है. 
 इस लिए सिर्फ शुभ शुभ बोलें. 
हालाँकि आलोचना का उद्देश्य रचना को और सुन्दर, सार्थक बनाना ही होता है. 
सबका शुभ हो. 
अनुपम