बुधवार, 24 नवंबर 2010

नितीश कुमार की जीत नीति और सच्चाई की जीत है!

नीति की जीत...

नितीश कुमार  की जीत बिहार के जिन्दा होने की खबर है. 
इमरजेंसी के बाद बिहार की प्रति व्यक्ति आय और अन्य राज्यों की आय के बीच चवन्नी और रूपये का फर्क था.बिहार आंदोलनों और नए सत्यों के उदभव की जमीन के रूप में जाना जाता रहा है.आर्थिक रूप  से बीमारी की ओर धकेले जाने के बाद बिहार के विकास का ग्राफ  नीचे की तरफ गिरता चला गया. बिहार घायल हो गया. हिंसक हो गया. आत्मघाती हो गया. 
घर का घर रोजी की तलाश में दरवेश हो गया. बिहार की रीढ़ तोड़ दी गयी थी. उसे आर्थिक रूप से दबा दिया गया.
बिहार जूता सिलनेवाले से बौद्धिक, तकनीकी, प्रशासनिक, विज्ञान, कला, साहित्य, सिनेमा सभी क्षेत्रों में ओबिडिएन्ट श्रमिक सप्लाई करने की फैक्ट्री बन गया. बिहार खाली हो गया.  जंगल गांवों में और गाँव महानगरों भागने लगे. बिहारी ! यह शब्द अपमानजनक तरीके से बरता जाने लगा.
नितीश जी की दूसरी जीत तक बिहार अपनी रीढ़ सीधी कर रहा था. अब बिहार अपने कद में खड़ा है. नितीश जी के चेहरे पर आप बिहार को पढ़ सकते हैं. टी वी पर अपने साक्षात्कार में आज उनहोंने कहा कि मैं अभिभूत हू क्योंकि यह एक अभूतपूर्व जन समर्थन है. मैं मेहनत करने से पीछे नहीं हटूंगा. मुझे बिहार की जनता ने बिहार के योग्य समझा है. फ़िलहाल मैं इससे ज्यादा नहीं सोचना चाहता हूँ. लेकिन अब अपेक्षाएँ और जिम्मेवारियां भी अधिक हैं.
आगामी पाँच वर्षों में बिहार सूर्य की तरह चमक उठेगा. इस सकारात्मक वातावरण में उसके उद्यमी बेटे अपनी सरजमीं पर लौटेंगे. बिहार ने पूरे देश को एक दिशा निर्देश दिया है. एक रास्ता सुझाया है. विकास को केन्द्रीय मुद्दे के रूप में स्थापित किया है. नितीश जी ने कहा कि काम करने वाले का समर्थन करके बिहार ने इतिहास बनाया है.
  महात्मा गांधी और श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुई क्रांतियों के बाद आधुनिक भारत के वर्तमान में यह घटना तीसरी बड़ी जनक्रांति है. विकास की इस जनक्रांति की लहर में पूरा देश बह जाने वाला है. उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा जैसे राज्य नजदीक है इसलिए इन राज्यों में आत्ममंथन की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया जल्द शुरू होने की उम्मीद की जानी चाहिए.
नितीश कुमार की जीत नीति और सच्चाई की जीत है. आम इंसान की जीत है.