गुरुवार, 3 नवंबर 2011

अच्छा सिनेमा!अच्छा सिनेमा!


निर्देशक की डायरी १७ 
अच्छा सिनेमा!अच्छा सिनेमा!
अनुपम
अच्छा सिनेमा! इसलिए क्योंकि मै जानता हूँ कि सिनेमा धर्म और राजनीति से ज्यादा तेजी से समाज को मोटिवेट कर सकता है. गढ़ों और मठों की संगठित शक्ति को परास्त करने का, ढहा देने का शक्तिशाली माध्यम बन सकता है सिनेमा. इसलिए ऐसे बुद्धिजीवी जो राजनीती और धर्म से परहेज करते हों वे सिनेमा को अपनी ताकत बना सकते हैं. सिनेमा से समाज को सुंदर बना सकते हैं.
कवि और नाटक कार हमारे यहाँ एक ही व्यक्ति हुआ करता रहा है. सिनेमा को नाटक की सहजता से बनाने का समय आ गया है. ५ डी कैमरा का उपयोग करके बहुत सस्ते में फिल्म बनाई जा सकती है. लागत इतना कम आएगा की आप दो चार थियेटर में दिखा कर भी अपना पैसा निकाल सकते है और क्षेत्रीय सिनेमा का स्तर  उठा सकते हैं. मै जानता हूँ की छोटे शहरों में बड़े सिनेमा के सपने देखनेवाले क्रिएटिव लोग हैं.
उपलब्ध लोकेशन के हिसाब से सिनेमा लिखिए, वही से कलाकार लीजिये, रिहर्सल करिए, और फिल्म बनाइये.  कवियों, कहानीकारों, नाट्यकर्मियों, चित्रकारों में फिल्म परिकल्पना की सहज प्रतिभा होती है. दो चार शॉर्ट फ़िल्में बनाकर हाथ साफ़ करना चहिये.  महज डेढ़ लाख में ५ डी कैमरा आ जायेगा. कहानी तो वही कहनी है बस दृश्य और ध्वनि की भाषा में कहना है. निर्देशक का काम अपने मातहत टेक्नीशियनों को अपनी फिल्म समझा देना ही है.
तो बनाइये अपने शहर में एक अच्छा सिनेमा.