गुरुवार, 1 सितंबर 2011

इ फिल्मी लोग...


निर्देशक की डायरी ९ 
इ फिल्मी लोग...
लालू  प्रसाद यादव जिस अपमानजनक तरीके से संसद में 'फ़िल्मी लोग' इ फिल्मी लोग शब्द  का प्रयोग कर रहे थे और कुछ फिल्म कर्मियों का नाम तोड़ मरोड़कर ले रहे थे और उसपर सदन में जिस तरह की मनोरंजक प्रतिक्रिया हो रही थी, उस से फिल्म कर्मियों और कला, संस्कृति  के प्रति राजनितिक महकमे की ओछी सोच का पता चलता है. मेरे ख्याल से इतना ही काफी है उनपर और संसद पर मानहानि का दावा करने के लिए. समान नागरिक संहिता के तहत फिल्मी लोग किस दर्जे में आते हैं ? क्या वे सम्मानजनक सेवा का, मनोरंजन और ज्ञानवर्धन का काम नहीं कर रहे हैं ? 
कई फिल्म कर्मी सदन में भी हैं और कोई भी फिल्म कर्मी उतना फूहड़ मनोरंजन नहीं करता जितना की लालू सदन के भीतर कर रहे थे. नेता के रूप में अगर कैरियर ख़तम हो गया हो तो सिनेमा में उनको भाग्य आजमाना चाहिए. अन्ना हजारे की जाति का पता लगाने के बाद लालू बहुत खुश हो  गए हैं. अन्ना की तरह ही उन्होंने कभी कृष्ण से भी अपना जातिगत रिश्ता जोड़ लिया था. हालाकि कृष्ण बांसुरी बजाते हैं और ये १५ वर्ष तक बिहार पर बांस बजाते रहे. जातिगत रिश्ते की जगह अगर लालू ने भगवान कृष्ण से भावगत रिश्ता जोड़ा होता तो इनकी समझ में आया होता की कृष्ण दुनिया के पहले सर्वगुण संपन्न सोलह कलाओं में पारंगत कलाकार थे. और ये फिल्मी, नाटकवाले, गायक, कवि , लेखक सब उनकी जायज संताने हैं. हलाकि अपने १५ वर्ष के शासन काल में आपने बिहार से एक - एक कवि, कलाकार, संगीतज्ञ, चित्रकार, समाज सेवी, सबको उखाड़कर फेक दिया था. लेकिन अब आप क्या करेंगे ? समय बदल गया है.
 तुलसी बाबा ने कहा है - 
उघरही अंत न होही निबाहू , कालनेमि जिमी रावन राहू.
 तो अंत तो उघरना ही है. सच से कबतक मुह छुपायेंगे ?
 फिल्मी लोग तो ट्रांसपरेंट हैं. वे अपने ऊपर होने वाले गॉसिप को भी नहीं रोकते और आपलोग तो सच भी सुनने को राजी नहीं हैं.
ओम पुरी के सत्य वचन से संसद का अपमान हो जाता है तो क्यों नहीं आप लोग एक लिखित और मौखिक परीक्षा टीवी चैनल के सामने दे देते हैं, ( जिनको आप ही में से किसी नेता ने 'डब्बेवाले' शब्द से संबोधित किया है ) और प्रश्नावली तैयार करने का काम अपर प्राइमरी के बच्चो को दिया जायेगा. मंजूर हो तो बताइये.
 आखिर इम्तहान की घड़ी कभी न कभी तो आनी ही थी.