मंगलवार, 6 मार्च 2012

शिल्पी और कलाकार



निर्देशक की डायरी २६    अनुपम 
शिल्पी और कलाकार 
'आमतौर से दुष्ट और घमंडी लोग मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं.'  
 कोई भी कला विद्यालय कलाकार पैदा करने का दावा नहीं कर सकता. अगर ऐसा होता तो हर म्यूजिक स्कूल हर साल हजारों भीमसेन जोशी और शुभा मुदगल पैदा कर देता. या फिल्म स्कूल और एक्टिंग स्कूल भी हर साल सैकड़ो कलाकार पैदा कर देते. दरअसल ये संस्थान शिल्पी तो बना सकते हैं कलाकार नहीं. कलाकार तो आपके भीतर से ही पैदा होता है. शिल्पियों में कला के प्रति वाही सम्मान भावना नहीं होती जो कलाकारों की पूंजी होती है. समझौतों से हासिल हैसियत से शिल्पी लोग अक्सर अपने आप को कलाकार समझ लेते हैं. हलाकि जीवन भर वे कलाकार के आत्मसम्मान को समझ नहीं पाते और अपने झूठे अभिमान में फूले रहते हैं. कलाकार को अपने भीतर से आकर देने के लिए बहुत आत्मबल चाहिए क्योंकि कबीर के शब्दों में - ' यह तो हांड़ी काठ की चढ़े न दूजी बार.' बाहरी चमक से चौंधियाने की जगह अपने भीतर तलाशिये कला की रोशनी, चमक.
 शुभ दिन.