रविवार, 6 नवंबर 2011

वन्दौ प्रथम दुष्ट के चरना... सबसे पहले दुष्टों के चरणों में प्रणाम है.


निर्देशक की डायरी १७
वन्दौ प्रथम दुष्ट के चरना... सबसे पहले दुष्टों के चरणों में प्रणाम है.  
अनुपम 

चालाकी से धन कमाया जा सकता है ज्ञान नहीं. मूर्ख इसलिए मूर्ख रह जाते हैं क्योंकि  वे स्वीकार नहीं करते कि वे मूर्ख हैं. वे अपनी समझ पर नहीं सवाल उठाते, बल्कि अपनी नासमझी के लिए दूसरे को जिम्मेवार ठहराते हैं. जैसे अगर किसी की कविता, विचार या स्क्रिप्ट उनकी समझ में नहीं आये तो उनके हिसाब से ये उनकी समझ कि कमी का नतीजा नहीं है,  अगर ऐसा ही है तो तोता मैना की कहानियां ही श्रेष्ठ साहित्य है जो सबको समझ में आती हैं. मूर्खों में गजब का आत्मविश्वास होता है. अपनी समझ की कमी पर वे वैसे दाँत दिखा कर हे हे हे करते हैं जैसे इसके लिए दूसरा जिम्मेवार हो.
जीवन भर मूर्खों से मेरा पाला पड़ता रहा और अब भी इनकी आदत नहीं हुई. जब मैंने फिल्म पर पी एच डी ज्वाइन की तो पूरे  हिंदी विभाग ने ठहाका लगाया था. ५ साल बाद जब मेरी थेसिस छप के आई तो उसी विभाग ने दामाद की तरह स्वागत किया.
कल ही एक महा मूर्ख से टकराया. गिड़गिड़ा कर कई महीने तक उसने स्क्रिप्ट माँगा, अपनी गरीबी दिखाता रहा कि मेरे पास इतने ही पैसे हैं और ज्यों ही उसके हाथ में स्क्रिप्ट दे दी, उसकी बुद्धि खुल गई, अब उसे हर बात समझना है लेकिन विद्यार्थी कि तरह नहीं चालाक कि तरह. अब उसे किसी और को डाइरेक्टर लेना है या शायद खुद ही डाइरेक्ट करना चाहता है. लेकिन चालीस साल में अर्जित ज्ञान चालीस मिनट में घोल कर भी नहीं पिलाया जा सकता. बड़ा कोई डाइरेक्टर उसके साथ आएगा नहीं क्योंकि यहाँ सब सबको जानते रहते हैं. हालाँकि मै मूर्खों का एहसानमंद भी हूँ क्योंकि कई बार ये कुछ कर गुजरने के लिए मुझे प्रेरित करते है. तो इतनी ही इनकी सार्थकता है किसी क्रिएटिव माइंड के लिए. बंगला  के महान साहित्यकार विमल मित्र ने कहा था  कि दासुओं ( दुष्टों)  ने मुझे साहित्यकार बनाया. यानि लिखते रहने के लिए प्रेरित किया. तुलसी दास भी सबसे पहले इन्ही कि वंदना करते हैं -- वन्दौ प्रथम दुष्ट के चरना... सबसे पहले दुष्टों के चरणों में प्रणाम है.  
किसी भी आर्ट फिल्ड में लेट एज में पैसों के बल पर घुसने वाले लोग सबसे ज्यादा फजीहत कि स्थिति पैदा करते हैं. फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे लोगों को वन टाइम प्रोड्यूसर कहा जाता है जो फिल्म प्रोड्यूस करने के बहाने फिल्म सीखना चाहते हैं और सिखाने वाले भी मिल ही जाते हैं. ये नॉन कामर्सियल गैर फिल्मी लोग प्रतिभा शाली लोगों के रास्ते में सबसे पहले आते हैं. ज्यादातर इनमे से दलाल होते हैं और एक फिल्म प्रोड्यूस करके अपनी छवि साफ़ करना चाहते हैं. हालाँकि अधिकतर असफल ही होते हैं लेकिन बाज नहीं आते. हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे...
मेरा भी सबसे ज्यादा समय ऐसे ही महात्माओं ने ख़राब किया लेकिन अब हमेशा के लिए मैंने इनके लिए दिल दिमाग के दरवाजे बंद कर दिए. किसी भी नए डाइरेक्टर को अपनी पहली फिल्म खुद प्रोड्यूस करना चाहिए या बड़े प्रोडक्शन हाउसेस में अपना प्रोजेक्ट प्रेजेंट करना चाहिए. किसी भी लोभ लालच में फिल्म इंडस्ट्री के हाशिये पर घूमते इन दलालों के चक्कर में नहीं आना चाहिए. मेरा तो बहुत वक़्त ख़राब हुआ लेकिन मेरे अनुभव पढ़कर किसी और का वक़्त बच जाए तो यह आलेख सार्थक होगा.