गुरुवार, 4 अगस्त 2011

आरक्षण रिलीज होने वाली है ...

 आरक्षण रिलीज होने वाली है ...

निर्देशक की डायरी 6

प्रकाश झा फ़िलहाल एकमात्र मच्योर फिल्म मेकर हैं जो गंभीर मुद्दों पर सिनेमा  बना रहे हैं. वे एकमात्र सफल राजनितिक सिनेमा के भी महारथी हैं. इनकी तुलना पोलैंड के महान फ़िल्मकार पीटर बाग्चोह से की जा सकती है क्योंकि राजनितिक विषय के प्रति ऐसी अपार निष्ठा और निरंतर सक्रियता दोनों ही फिल्मकारों की एक जैसी हैं. हिप हिप हुर्रे, दामुल से आरक्षण तक की प्रकाश झा की लम्बी यात्रा पर मै एक विस्तृत आलेख लिखनेवाला हूँ लेकिन फ़िलहाल कुछ बातों का जिक्र जरूरी है. आरक्षण रिलीज होने वाली है और राजनितिक लोग घबरा गए हैं. फिल्म देखे बिना फिल्म पर सवाल उठाये जा रहे हैं. आखिर क्यों?
दुनिया की दूसरी बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में नब्बे प्रतिशत या तो लव स्टोरी बनती है या एक्शन सिनेमा. इन फिल्मों से मनोरंजन होता है लेकिन ज्ञानवर्धन या जागरूकता जो की सिनेमा जैसे माध्यम के आवश्यक कर्तब्यों में है वह नहीं होता. इन फिल्मों से सत्ता को कोई खतरा नहीं महसूस होता लेकिन प्रकाश झा का सिनेमा मुश्किलें पैदा कर सकता है.यह अवाम को जगा सकता है जबकि सिनेमा का बहुधा इश्तेमाल अवाम को भुलाये रखने में ही होता है. 
आप कल्पना नहीं कर सकते हैं की कला सिनेमा का दौर ख़त्म हो जाने की कगार पर आया हुआ एक फिल्म मेकर अगर इस समय में भी सार्थक सिनेमा बना पा रहा है तो उसे क्या क्या संघर्ष आज भी करने पड़ते होंगे. 
सिर्फ शुभकामना ही नहीं साथ की जरुरत है जिससे प्रकाश झा अपनी इस फिल्म को रिलीज कर पायें और निरंतर सिनेमा बनाते रहें.