रविवार, 15 अप्रैल 2012

भारतीय सिने-सिध्दांत [ INDIAN FILM THEORY ]

फिल्म निर्देशक का माध्यम है......
लेखक, चित्रकार या मूर्तिकार को अनात्म उपादानो से अपने सृजन को आकर देना होता है. मूर्तिकार को मिट्टी, पत्थर, लकड़ी या धातु से अपनी बात कहलवानी होती है: चित्रकार को रंग और कैनवस से, लेखक को स्याही से. निर्देशक का माध्यम जिन्दा आदमी है - अभिनेता ! यहाँ अभिनेता थियेटर से अलग है . एक जिन्दा आदमी  मिट्टी, पत्थर, लकड़ी या धातु नहीं है ! वह रंग और कैनवस भी नहीं  है . भरतमुनी कहते हैं कि" अभिनेता को आईने की तरह पारदर्शी होना चाहिए."  यह विचार नाटक के लिए चाहे जितना सही हो लेकिन सिनेमा के लिए तो मन्त्र है . फिल्म का अभिनेता मैनरिज्म का शिकार होकर स्टार में ट्रांसफोर्म हो जाता है .
स्क्रिप्टें  सम्हाल  लीजिये . इंडीपेंडेंट सिनेमा  की आँधी उठने  ही  वाली  है .
                                                                                                                    क्रमशः