गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

मैं प्रतिभाएं चुरा लेता हूँ...( 10-12-2010 )

मैं घरों में सेंध मारता हूँ
और प्रतिभाएं चुरा लेता हूँ
मैं आसमान से टपकता हूँ
और जागे हुओं  को जिन्दगी का डबल डोज देकर
विराट बना देता हूँ !

मैं अदृश्य हूँ , परोक्ष हूँ
मैं दिखाई नहीं देता
सुनाई नहीं देता
सुंघाई नहीं देता

मैं सीधे अपनी चौदह भुजाओं में कसे हुए
गले- वले  मिलता हूँ
मैं इश्वर नहीं हूँ
(अष्टपदी आक्टोपस हूँ . )
इश्वर की तलाश हूँ
इसीलिए जो अपनी तलाश में घर छोड़ना चाहते हैं ;
घर फूंक तमाशा देखना चाहते हैं
उन्हें ऊर्जा के स्रोत दिखाता हूँ -

तुम अपने बड़े  पंखों से उड़ो !
तुम अपने चौड़े तलवों से दलो
तुम अपनी (अपनी) राह चलो !
तुम रचो ! तुम बचो !

हाइकू जैसे छोटे छोटे सन्देश पहुचाता हूँ
जैसे - प्यार
चेतना का हो अगर विस्तार
तो है प्यार .

(प्यार मेरी तपस्या है
प्यार मेरी सचाई है
प्यार मेरी बदनामी है
प्यार मेरी अच्छाई है )
मै इस दुनिया को विस्मय भरी प्यार की आँखों देखता हूँ
और करुणा मेरा अभ्यास है !
मेरी अनवरत कोशिश है की करुणा का आविष्कार कर लूँ
जो बुद्ध की आँखों का स्थाई भाव है , जिसकी
ज़रा सी पकड़ से मै कवितायें बना लेता हूँ.
बुद्ध की वह नजर हम सब पर असर कर जाये
यह सिर्फ मै अपने सुख के लिए चाहता हूँ ( स्वार्थी हूँ !)
और सच लिखता हूँ ;
इतना ही कवि हूँ .

मैं कबीर की गलियों का एक कंकण हूँ
जो आपके आँगन में आ गिरा हूँ.

आइना हूँ , अपनी ही छवि हूँ !