गुरुवार, 5 जुलाई 2012


विकास के नाम पर 


भवनों के बीच
 उग आते पहाड़ों ने 
कविताओं का नुकसान किया है. 

मेरी खिडकियों के बाहर की हरी जमीन
मेरा चित्रपट
जहाँ देखी सफ़ेद बगुलों की पाँत, मेला, बारात ;
जबसे वह  खुला उद्यान 
भवन के नाम कुर्बान होना शुरू हुआ है 
मेरी कविताओं का 
बड़ा नुकसान हुआ है. 

सच तो ये है कि आज कल साहित्य के नाम पर
ब्लोग्ग पर, वाल पर 
कूड़ा लिख रहा हूँ. 

पुरानी कविताओं में अर्थ ढूंढ़ रहा हूँ.

 मेरी खिड़की के बाहर 
एक चौदह मंजिली इमारत उग आई है,
जिसने छीन लिया है 
हमारा खिड़की भर आसमान

और बिना आसमान के 
कहाँ लिखूं  मैं कवितायेँ ?

अनुपम