शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

व्यवस्था , अनुपम


                              व्यवस्था                      अनुपम 

 १.
ग्लोब पर चढ़ी हुई है एक चींटी
ग्लोब में घुसा हुआ है एक तिलचट्टा
एक झिंगुर लिख रहा है नए नक़्शे
पढ़ रही है एक मक्खी,

गुबरैले चला रहे है चक्की.

चल रही है व्यवस्था !...
 २.
शांत रहो ..अभी व्यस्त है वैज्ञानिक
मानवनाशी बम बनाने में -
एक सुरक्षित कंडोम तक जो नहीं बना सके !
व्यस्त है प्रधानमंत्री !
सीमा विवाद सुलझाने में .....
सभी व्यस्त है !... तुम अपनी भूखी चीख दबाओ !
दर्द पी जाओ ...
चलने दो व्यवस्था ...
3.
बम चाहे जहाँ भी फूटे
मेरे सीने में गड्ढे बढ़ते ही जाते हैं,

अमेरिका चाहे ईराक को लूटे
मेरे घर में वस्तुएं घटती ही जाती हैं.
कुवैत हो की इरान,
अफगानिस्तान या हिन्दुस्तान
भय का अंधकार
बढ़ता ही जाता है.
                                                       
  4.
चोरों ने तय किया - वे अपना संविधान बनायेंगे,
अपनी सहूलियत के लिए इस संसार में
वे अपना चोर-संसार बनायेंगे
उसकी अपनी नैतिकताएं होंगी
अपने आदर्श ; सबसे बढ़कर ये कि उसमें
जो नहीं होंगे चोर
उनके लिए भी काफी जगह होगी ....
5.
खुश है लोग
लोकल ट्रेन में ठसे हुये हैं ,
मगर खुश हैं!
पाँवों तले रौंदे जाने के बावजूद खुश हैं
तीसरी दुनियां के देशों में --
यह बात पसंद नहीं आती 'बुश' को (उस को...)
कि अभी तक लोग 
खुश हैं...

6.
हीक भर नरक के बाद
पीक भर स्वर्ग!
कमाल के दाता हो !
7.
बड़ी बड़ी होर्डिंगों पर
नगर के चौराहों पर औरत के जिस्म के
भीतर का आदमी
नाच रहा है
आदमी के भीतर की औरत
तालियाँ बजा रही है
सबकुछ
बहुत ठोस
भीतरी सूक्ष्म तल पर बदल रहा है.

8. 
सवाल ये नहीं है कि पुरुष औरत को देह समझता है
औरत भी यही समझती है
और पुरूषो कि मिलीभगत से चल रहा है कारोबार ;
देह एक प्रोडक्ट -
एक प्रोडक्ट को बेचने के लिए देह --
देह साबुन ,देह तौलिया ,देह चादर ,
देह जूस, देह चॉकलेट, देह पेट्रोल, देह मिसाइल

देह ही देह से भरी है विश्व-बाजार की फाइल !

9.
चिड़िया पक्षी गाय
बकरी दीमक चींटे
पानी खरीदने खड़े होंगे एजेंसियों में
जहाँ यंत्र स्तनों से प्रति लीटर
नापकर दूहेंगे पानी

वे एक बटन दबायेंगे
एक बूंद कम पानी भर जायेगा
वर्तन में , बूंद बूंद से
भरता रहेगा उनका समुद्री उदर....
10 .
पहले थोडा गेहूँ डालो
चक्की चला दो
फिर थोडा कंकड़ डालो
चक्की चला दो
एक झक्कास पैकेट में बंद करो
बाजार में पंहुचा दो .
चक्की चलती रहेगी!
     11.
एक जैसी इमारतें
एक जैसे कमरे
एक जैसे चेहरे
एक जैसी भाषा
एक जैसा अंदाजे-बयां

एक जैसी मौत
एक जैसी कब्र

यानि ऊब ही ऊब
बहुत खूब!
12.
भाषा से नफ़रत
शब्द से नफ़रत
शब्द में जीने वाले मन से नफ़रत
मन को रखने वाले तन से नफ़रत

'खांखर" शब्द को क्यों रख दें आंग्ल में ?
उसे वहां भी क्यों न रहने दें - जहाँ है ?

पंछियों का बदलें भूगोल
बदल दें जलवायु !
सभी पेड़ एक ऊंचाई के
सभी फूल  निर्गंध ...
13.
वे भविष्य में एक गोली दागेंगे
जिसकी आवाज वर्तमान में सुनाई देगी
और लहूलुहान होगा अतीत
फिर हमारे संग्रहालय ,पुस्तकालय  और सभी तरह के आलय
जिसमें हम अपना इतिहास रखते हैं -- जला दिए जायेंगे !
वहां लटका दी जाएँगी उनके नाम कि तख्तियाँ
हमारे हजारों साल के इतिहास को मेटकर वे अपना दो हजार साल का
इतिहास पढ़ाएंगे ; हमारी अगली पीढ़ियों को
आधुनिक बनायेंगे !
14.
पूरब के दिल में इस तरह एक सन्नाटा
फैल रहा है - जैसे पुराना बड़ा कमरा हो, जिसमें
बरसों से कोई नहीं रह रहा हो...
15.
अभिमन्यु चक्रव्यूह में फँस गया,
तुम निकल सकते हो
वह बाहर निकलना नहीं जानता था
तुम जानते हो

अभिमन्यु !
अपने जाने हुए को
समूचा दाव पर लगा गया :
हमें
बाहर निकलने का रास्ता दिखा गया!