सोमवार, 21 नवंबर 2011

गुरिल्ला सिनेमा का घोषणा पत्र और गुरिल्ला सिनेमा की तैयारी - का पुनर्प्रकाशन




  • गुरिल्ला सिनेमा का घोषणा पत्र!


    अनुपम


    अच्छा सिनेमा! इसलिए क्योंकि मै जानता हूँ कि सिनेमा धर्म और राजनीति से ज्यादा तेजी से समाज को मोटिवेट कर सकता है. गढ़ों और मठों की संगठित शक्ति को परास्त करने का, ढहा देने का शक्तिशाली माध्यम बन सकता है सिनेमा. इसलिए ऐसे बुद्धिजीवी जो राजनीति  और धर्म से परहेज करते हों वे सिनेमा को अपनी ताकत बना सकते हैं. सिनेमा से समाज को सुंदर बना सकते हैं.
    कवि और नाटक कार हमारे यहाँ एक ही व्यक्ति हुआ करता रहा है. सिनेमा को नाटक की सहजता से बनाने का समय आ गया है. ५ डी कैमरा का उपयोग करके बहुत सस्ते में फिल्म बनाई जा सकती है. लागत इतना कम आएगा की आप दो चार थियेटर में दिखा कर भी अपना पैसा निकाल सकते है और क्षेत्रीय सिनेमा का स्तर उठा सकते हैं. मै जानता हूँ की छोटे शहरों में बड़े सिनेमा के सपने देखनेवाले क्रिएटिव लोग हैं.
    उपलब्ध लोकेशन के हिसाब से सिनेमा लिखिए, वही से कलाकार लीजिये, रिहर्सल करिए, और फिल्म बनाइये. कवियों, कहानीकारों, नाट्यकर्मियों, चित्रकारों में फिल्म परिकल्पना की सहज प्रतिभा होती है. दो चार शॉर्ट फ़िल्में बनाकर हाथ साफ़ करना चहिये. महज डेढ़ लाख में ५ डी कैमरा आ जायेगा. कहानी तो वही कहनी है बस दृश्य और ध्वनि की भाषा में कहना है. निर्देशक का काम अपने मातहत टेक्नीशियनों को अपनी फिल्म समझा देना ही है.
    तो बनाइये अपने शहर में एक अच्छा सिनेमा.

गुरिल्ला सिनेमा की तैयारी ३ , २७-११-२०११ 
सिनेमा जीवन के समान है . जीवन की छवि है और जीवन से सौ गुना जीवंत है. सिनेमा अनंत है. उनमे ही एक कड़ी है गुरिल्ला सिनेमा. आपके अनुभव, परिवेश, संस्कार और सम्बन्ध सरोकार निजी हैं, इन्हें क्षेत्रीय स्तर पर छोटे छोटे ट्रूप अति लघु बजट की फिल्म और अति उत्कृष्ट कथानक बनाकर अपनी रचनात्मक भूख शांत करेंगे  .  यहाँ न कोई हीरो होगा न जीरो होगा. सब साथी होंगे. सृजन के साथी!
एक शिक्षक, समाज चिन्तक, वैज्ञानिक, डाक्टर ही नहीं एक सामान्य मजदूर के दिमाग  में हो सकता है एक  बढ़िया सिनेमा. यानि उसके जीवनानुभवों में भी. उसे वहां से निकाल कर तराश कर प्रगट( विजुअलाइज) करने की जरूरत है.
" ये इल्तिजा ए मोहब्बत नहीं जरूरत है." ( बशीर बद्र )
निर्माण :
उपलब्ध लोकेशन के हिसाब से साहित्य के या नई कहानी से कथानक का चयन.
(चित्रात्मक उपन्यासों और कहानियों में बनी बनाई स्क्रिप्ट मिल जाती है.)
चरित्रों से मिलते जुलते चेहरों का अभिनेता के रूप में चयन, कास्टिंग.
नाटक की तरह जबर्दश्त एक महीने का रिहर्सल. संवाद और मूवमेंट, गति का पूर्ण अभ्यास. 
अपने शहर के चित्रकला, पेंटिंग के छात्रों से कला निर्देशन, छायाकार आदि का चयन. 
५ डी, ७ डी कैमरे से शूटिंग , एडिटिंग.
अपने आसपास कही भी आपको एक डबिंग, रिकार्डिंग  स्टूडियो मिल जाएगा, गीत संगीत का काम अपने शहर या स्थान के कलाकारों, संगीतज्ञों को दे दीजिये. 
ये छोटे समूह बड़ा सिनेमा बना सकते हैं. 
मै जानता हूँ की तमाम छोटे, बड़े शहरों में लोगों के सपनो में बड़ा सिनेमा भ्रूण के रूप में प्रगट होता है.
 उसे बन्धुवत सहयोग की जरूरत है.
सबका शुभ हो. सृजन हो.
पुनः - अपने विचारों और सपनों को य्न्मुक्त करिए!
शुभ दिन !

डॉ. अनुपम 



गुरिल्ला सिनेमा की तैयारी -  २                            डॉ. अनुपम, 21-11-2011
स्टेप 1, स्क्रिप्टिंग :
इन तमाम वर्षों में फिल्म पर अनुसन्धान के दौरान जो भी मैंने चिंतन मनन किया है वह सब जल्द ही पुस्तकाकार उपलब्ध हो जाएगा. 
गुरिल्ला सिनेमा का कांसेप्ट मेरे २५ साल के निरंतर अध्ययन मनन और फिल्म दर्शन का परिणाम है.संसार की सभी भाषाओँ में बनने वाली फ़िल्में मैंने देखी हैं और अंग्रेजी तथा हिंदी के दुर्लभ ग्रंथों का अध्ययन किया है.गुरिल्ला सिनेमा वह अमोघ अविष्कार है जिससे मै सहज सृजनात्मक लोगों, आम लोगों के हाथ में सिनेमा नामक जादू को पकड़ा दूंगा. कल्पना करिए कि हर छोटे बड़े शहर से पांच दस ऐसी फिल्मे बनकर आईं हैं, जैसा हम देखना चाहते हैं.
 तकनीकी विकास ने मुझे रास्ता सुझा दिया की  दूसरी किस्म की फिल्म इंडस्ट्री किसी एक शहर में नही बल्कि पूरे देश में होगी.
दूसरी फिल्म इंडस्ट्री क्रिएटिव लोगों के दिमाग में होगी. 

उदहारण के तौर पर - किताबों के बड़े प्रकाशक दिल्ली में हैं तो क्या किताब लिखने के लिए दिल्ली में रहना जरूरीहै ? जिस तरह किसी भी स्थान पर रहकर आप किताब लिख सकते हैं, चित्र बना सकते हैं, उसी तरह अब समय आ गया है कि आप अपनी फिल्म बनाइये.फिल्म बनाना आज से ज्यादा आसान कभी नहीं था. आप एक किताब की तरह अपनी फिल्म स्क्रीन पर लिख सकते हैं. इस दूसरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए सबकुछ नया होगा, यहाँ तक कि इनके प्रदर्शन और वितरण की भी अलग प्रणाली होगी, लेकिन पहले दस बीस फिल्मे तो बनें.
गुरिल्ला सिनेमा की विचारधारा को मानते हुए कई मित्र फिल्म बना रहे हैं. मै भी बना रहा हूँ. उच्च कोटि की कविता से जो आनन्द उठा सकते हैं, जिनका मानस इतना विकसित हो, वे मेरे प्रोडक्शन फेरीवाला से बन रही कविता फिल्म से खुश होंगे.गुरिल्ला सिनेमा की इस थियरी के बाद मै प्रैक्टिकल करने जा रहा हूँ.
 गुरिल्ला सिनेमा का तरीका ये है की यहाँ हर काम सहमति -असहमति लेकर किया जायेगा. स्क्रिप्ट से स्क्रीन तक सबकुछ शेयर किया जायेगा. इसी वाल पर हम स्क्रिप्टों का मेला भी आयोजित करेंगे या एक साईट बनायेंगे जैसे पेंटिंग की  या म्यूजिक की ऑनलाइन गैलरियां  हैं. तो स्क्रिप्ट और फिल्म की ऑनलाइन गैलरियां होंगी. 
कहानियां हैं तो उनके खास सुननेवाले भी हैं. दर्शकों के कई ऐसे दल हैं, प्रकार हैं और उनकी संख्या काफी हैं जिनकी पसंद का सिनेमा नहीं बन रहा. उस बाजार को लक्ष्य करिए.
 फ़िलहाल निर्भय होकर एक दूसरे  से स्क्रिप्ट शेयर करिए. एक दूसरे का साथ दीजिये और बनाइये एक अपने मन लायक फिल्म !

 बोलिए.. जय हो ढूंढीराज गोविन्द फालके! 
 जो हरिश्चंद्र बनाने के लिए ब्रिटेन जाकर गुलाम भारत में सिनेमा बिजनेस को ले आये.  हम इसे गाँव गाँव तक पंहुचा देंगे. भारत की हिंदी सहित २० मान्य भाषाओँ के अलावा १००० से ज्यादा बोलियों, बानियों में कहानियों का अक्षय भंडार है.  उसमे हाथ डालिए, जो भी कहानी हाथ आ गई उसको स्क्रिप्ट लिखकर परखिये. 
स्क्रिप्ट लिखना बहुत आसान है - जिस तरह से आप सोच रहे हैं, उसी को शब्द देते जाइए, वाक्य बनाना भी जरूरी नहीं. क्योंकि एशिया समेत पूरे विश्व में फिल्म गुरु और मेकर के रूप में ख्यात सत्यजित राय कहते हैं - फिल्म की स्क्रिप्ट सिर्फ एक परियोजना होती है इसका कोई साहित्यिक महत्त्व नहीं होता.
तो लिखिए सिर्फ अपने लिए, अपनी ख़ुशी के लिए एक स्क्रीनप्ले.

भारतीय दर्शक अब एक बेहतर दर्शक है.
 उसको बढ़िया सिनेमा परोसिये.
आदर का साथ -
डॉ. अनुपम



गुरिल्ला सिनेमा की तैयारी- १ 

क्योंकि मुक्ति के रास्ते अकेले नहीं मिलते. मुक्तिबोध
बातचीत में ही विचारों के स्फुलिंग जनमते हैं. जे. कृष्णमूर्ति 
पढ़े लिखे लोगों को फिल्म संसार में आना चाहिए. भले घर की महिलाओं को फिल्म संसार में आना चाहिए. जिस से मनोरंजन उद्योग का स्तर ऊपर उठ सके और देश के बाहर हमें लज्जित न होना पड़े.दादा साहेब फालके
क्षेत्रीय सिनमा का विकास होना चाहिए. हमें अपना मनोरंजन खुद पैदा करना चाहिए. अनुपम 

preparation..skill..appreciation..exposure..yah sab to apani jagah par relevant hai hi ..par real problem film ki marketing aur uske business aspect ka hai.. Neel kamal

When our society is being headed towards nowhere. when we are really grasped by some introduced culture that we really can not grasp and when our society is degenerating towards a final darkness of hatred and jealousy, and left us just as mind controlled labors and more importantly when leadership of a country are impotent and surrendered themselves in front of power of wealth then this term “ Gurilla Cinema” may ignite us to walk few more ways with hope and human values. thank you... somnath day

(उपरोक्त विचारों के आलोक में इस प्रारूप की परिकल्पना की गई है. पारस मिश्र और सभी मित्रो को प्रेरणा के लिए धन्यवाद.)

प्रारूप परिकल्पना :
यह ठीक है कि सिनेमा एक स्वप्न से शुरू होता है लेकिन यह एक मेहनतकश कला है. निर्माण से प्रदर्शन तक ( आइडिया से आंसर प्रिंट) की (स्टेप बाई स्टेप) यात्रा एक एक कदम फूंक फूंक कर रखा जाये तभी सकुशल पूरी होती है. इसलिए इसको सीखना होगा. इसको प्यार करना होगा. सिर्फ हिंदी ही नहीं अन्य भाषाओँ की फिल्मे भी देखनी, समझनी होगी.

सिनेमा बनाने की तरफ बढ़ने के पहले हमें कुछ प्रश्नों का स्पष्ट समाधान कर लेना होगा. 
सिनेमा क्या है?
सिनमा क्यों बनाएं?
सिनेमा कैसे बनायें और प्रदर्शित करें?

इसे अगर सिनेमा की तरह ही तीन भाग में बांटें तो एक्ट वन - सिनेमा क्या है? एक्ट टू - सिनमा क्यों बनाएं? एक्ट थ्री - सिनेमा कैसे बनायें ?

पहले दो प्रश्नों का हल मिलते ही तीसरा प्रश्न अपना दरवाजा खुद खोल देगा. आमतौर से लोग तीसरे प्रश्न से समाधान पाना चाहते हैं और फिल्म लोक के काँटों में उलझ जाते हैं.
इन प्रश्नों के विषय में मै अपने मोटे विचार रक्खूँगा और इस ग्रूप में उसपर बहस को आमंत्रित करूँगा. 

सिनेमा क्या है? - 
सिनमा एक सामूहिक कला है जिसे समूह में सीखा, बनाया और दिखाया जाता है. 
सिनमा क्यों बनाएं?
क्योंकि आपकी क्षेत्रीय संस्कृति को आप ही स्क्रीन पर उकेर सकते हैं. सिनेमा समाज को सुंदर बनाने के लिए बनाइये. स्थानीय स्तर एक नए उद्योग का दरवाजा खोलने के लिए बनाइये. सिनेमा के माध्यम से अपने परिवेश को री क्रियेट करने करने के लिए बनाइये.
सिनेमा कैसे बनायें?
वैसे ही जैसे आप नाटक का आयोजन करते रहे हैं. मोटामोटी इसके तीन चरण हैं प्री प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन जिसके चार मुख्य कदम (स्टेप) हैं - स्क्रिप्टिंग, कास्टिंग, शूटिंग और एडिटिंग.

सिनेमा क्या है और सिनेमा क्यों बनाये सुनिश्चित कर लेने के बाद सिनेमा कैसे बनायें का रास्ता अपने आप खुल जायेगा. इसे खुद पर लागू किया गया एक नौ महीने का कोर्स माना जाये तो टेक्स्ट, ग्रूप, फिल्म सोसाइटी, एन ऍफ़ डी सी, नेट, वर्क शॉप आदि के सहयोग लेकर तीनो सवालों को क्षेत्रीय स्तर पर स्वयं हल करना होगा. 

आपके विचार आमंत्रित हैं. 

सादर,
डॉ. अनुपम

कोई टिप्पणी नहीं: