बुधवार, 18 जनवरी 2012

एक ताज़ा रचना


एक ताज़ा रचना 
                                                अनुपम 
नटवर तेरी गैया 
खा गई मेरा गल्ला .

आधा ले गया लल्ला 
बाकी ले गया दल्ला 
जो कुछ बचा खुचा था 
सो कुछ यहीं रखा था .

उसमे कुछ उसका था
उसमे कुछ अपना था 
अपनेमे सपना था 
सपने में था सैंया .

कबसे ही उखड़ा है
 दरवाजे का पल्ला 
एक नहीं कपड़ा है 
सात बरस का लल्ला,

सुनलो जसुमति मैया 
सुन लो नटवर लल्ला 
सब खा गई तेरी गैया 
क्या खाए मेरा लल्ला .

नटवर तेरी गैया 
खा गई मेरा गल्ला .
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एक ताज़ा विचार - अगर आपको लगे कि आप किसी को प्रेम कर रहे हैं या आपको कोई प्रेम कर रहा है तो पूछ लीजिये, कह लीजिये. अगर हाँ तो हाँ, न तो ना . मित्रता बची रहेगी. यही स्वाभाविक है भावो को स्पष्ट कर लेना. भावों को दबा देना ठीक नहीं. शुभ दिन.

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