शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

निर्देशक की डायरी ११


निर्देशक की डायरी ११  
पुरानी डायरी का एक पेज ..
(२-८-१९९६, बिड़ला होस्टल, बनारस)
कि ऐसी चीखती कविता बनाने में लजाता हूँ . मुक्तिबोध 

लुत्ती १                                          अनुपम 
एक ही धरती पर 
एक ही देश में 
तुम अरबों खरबों घोंटने 
घोंटाने में परेशान दिखते हो
कोई पाई दो पाई के लिए 
हैरान होता है 

शत प्रतिशत बेईमानी के बाद की तलछट के लिए मारामारी 
जारी है एक आत्महंता समर्पण

एक ही धरती पर 
एक ही देश में 
हम किस संस्कृति में जी रहे हैं 
किस देश काल में 

हर दिन आपात काल का मातम क्यों 
इस हिन्दुस्तान में इतना अधिक इण्डिया क्यों ?

(संभवतः साहित्य अमृत में प्रकाशित. )

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