मंगलवार, 26 जुलाई 2011

या खुदा ! हिंदी पर रहम कर !

निर्देशक कि डायरी -४ 
घर बर्तन करने वाली लडकियों और किसानी करने वाले लौंडों को आजकल हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर लोग फिल्म पर शोध का काम थमा देते हैं. इस नापाक सिलसिले को रंग देने का गुनाहगार मै हूँ तो ये लोग मुझसे संपर्क करते हैं. ये साहित्य पढने लायक तो है नहीं जो हिंदी में उपलब्ध है, बेचारे सिनेमा पर क्या करेंगे. कुछ ने तो मेरे शोध प्रबंध को शब्दशः कॉपी कर डिग्री भी ले ली. क्या करें यार? अपनी हिंदी का क्या करें?
मुझे तो कोई भी आर्थिक मदद या किसी भी तरह की मदद हिंदी विभाग से नहीं मिली थी. न आज तक आगे काम करने के लिए मिली. मैंने स्वतंन्त्र रूप से सिनेमा को समझने केलिए नोट्स बनाये और किताब में परिवर्तित कर दिया. हिंदी विभाग में जमा किया तो उनलोगों ने एक डिग्री दे दी डॉक्टर की जो मेरी नजर में धेले भर की भी नहीं है. किताब छप कर आई तो मै सफल हुआ. और फिल्म बनाने में लगा हूँ. अपने खर्च से और किताबें तैयार कर रहा हूँ. और ये सुसरे शोध शोध कर के समय ख़राब करते हैं. ये अपने विभाग से कोई ओफिसिअल लेटर भी लेकर नहीं आते. क्या करूँ इनका भाइयों?
मुंबई यूनिवर्सिटी, जे एन यु, देल्ही यूनिवर्सिटी, बी एच यु , इन के हिंदी विभागों में मूर्ख भरे हैं क्या? फिर ये मध्यकाल पर ही केवल शोध क्यों नहीं करवाते या कोई ढंग का रास्ता खोजें जिसमे हमरे जैसे लोगों का समय लेने के अधिकारी बन जाएँ.
सच्चाई ये है कि हिंदी अब हिंदी के प्रकाशकों और हिंदी के विभागों से बहार विकसित होगी. आईटी सेक्टर से मै गंभीरता कि उम्मीद कर रहा हूँ. किसी भी विषय में और सिनेमा में तो आजतक एक तकनिकी किताब नहीं मिलेगी हिंदी में. 
राष्ट्रवाणी तो थी ही हिंदी, राष्ट्रभाषा बनने के कुछ ही दिनों बाद राजनीतिक गलियारों में  साहित्य के दलालों के हाथ का खिलौना बन गयी .

मेरी पुस्तक भारतीय सिने-सिद्धांत को हजारों लोगों ने पढ़ा और लाभ उठाया है. उसे लिखने में मुझे सात साल लगे और प्रकाशित होने में तीन साल, उसके बाद सात साल और गुजर चुके हैं और मंशा रहते हुये भी मै भी दूसरी किताब नहीं दे सका.

या खुदा ! हिंदी पर रहम कर !





2 टिप्‍पणियां:

Divya Prakash ने कहा…

I can sense the hard work and effort you made,though i've not read your book but would love to.
Do let me know if we can do something together.

Regards,
DP
http://master-stroke.in/
dpd111@gmail.com

Dr. Anupam Ojha ने कहा…

Jaroor. Join me on Facebook my dear.