शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

निर्देशक की डायरी



निर्देशक की डायरी
श्याम बेनेगल ने ४२ साल की उम्र में अपनी पहली फीचर फिल्म डाइरेक्ट की थी. तबतक वे एक हजार से ज्यादा ऐड फिल्में बना चुके थे. मैं ४१ साल का हो गया हूँ और अबतक पाँच सौ से ज्यादा टी वी प्रोमो बना चूका हूँ और तीन शोर्ट फिल्में. मैंने अपने लिए श्याम जी की ही नियति चुनी है. एक ज्योतिषी की बात मानें तो उन्होंने मुझे सन २००१ में लिख कर दिया है की फिल्म में लेखक बन्ने की मेरी सारी कोशिशें नाकाम हो जायेंगी क्योंकि तुम्हारी नियति निर्देशन है. थियेटर से टी वी और अब सिनेमा तक ये बात सच साबित दिख रही  है. न मानते हुए भी ज्योतिष को मानना पड़ रहा है.
बहुत शुरुआत से ही किसी दल का हिस्सा बनने की जगह अपना कुछ करना मुझे पसंद रहा है. साहित्य में बड़े संगठनों का हिस्सा बनने की जगह मैंने अपनी मंडली समाधान समूह बनाकर १९८५ से २००० तक उसे विधिवत चलाया. चुकी वह छात्र जीवन का हिस्सा था इसलिए बनारस हिन्दू  विश्व विद्यालय से निकलने से पहले  कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया. समाधान की तरफ से मैंने आख़िरी कार्यक्रम १९९९ के अंत में आयोजित किया था - बनारस के दस कवियों का एकल काव्यपाठ. वह सफल रहा और उसके सारे दस्तावेज श्री अवधेश प्रधान जी ने मांग लिए. योजना उन कविताओं को प्रकाशित करने की थी जिसका अब कुछ पता नहीं.
साहित्य और रंगमंच की तुलना में सिनेमा तत्काल प्रभावी है. यही बात मुझे सिनेमा की तरफ ले आई. यहाँ आकर मै एक गुमनाम लेखक और अल्पनाम निर्देशक तो बन गया लेकिन जिन गिने चुने निर्माताओं से मिला वहां सिर्फ समय और विचार नष्ट हुए.
अब मैंने अपना प्रोडक्शन हाउस भी शुरू कर दिया है. मेरी नियति है की मै अपना संगठन बनाकर ही कुछ कर पता हूँ. दर असल मै रचनात्मक स्वतंत्रता से समझौता भी कर लूँ तो सामने वाले को यकीन नहीं होता. और अगर मै अपनी पूरी प्रतिभा का प्रदर्शन करूँ तो वह भी नहीं पचता.
सिनेमा पर शोध और पिछले दस साल के व्यवहारिक अनुभव के साथ मैं इतना संपन्न हूँ की सिनेमा को एक फेरी वाले की तरह घूम धूम कर पूरे उत्तर भारत में फैला दूंगा.मैंने अपने प्रोडक्शन का नाम फेरीवाला फिल्म प्रोडक्शनस रक्खा है. कैसा है?
ज्योतिषी की बात में सचाई है भाई. मानना पड़ेगा.






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