सोमवार, 22 नवंबर 2010

जय विश्वमित्र की माटी! जय भोजपुर!

घेरो! घेरो! घेरो!!!!! हांका डालो .दौड़ा कर हंफा दो! इ हुंडार सब भागने न पाए. पहली बार इ सब रौशनी देखा है. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के शब्दों में कहूँ तो -
भेड़िये की आँखें सूर्ख हैं
 तुम उसकी आँखों मवन अपनी आँखें डाल दो
 जबतक तुम्हारी आँखें सुर्ख न हो जाएँ
 भेड़िये दाँत दिखायेंगे, डरायेंगे
तुम न डराओ न डरो
तुम मशाल जलाओ
वे डरेंगे क्योंकि भेड़िये मशाल नहीं जला सकते
भेड़िये भागेंगे
तुम उनका पीछा करो
दौडाओ
गहरे जंगल तक खदेड़ डालो
भेड़िये फिर आयेंगे तुम्हे मशाल की याद दिलाने के लिए.

(स्मृति के आधार पर लिखा है इसलिए कुछ भूलें भी हो सकती है लेकिन इस वक़्त  जरूरी सन्देश मेरा उद्देश्य है. किसी के पास इस सिरीज की और कवितायें हों तो कृपया प्रकाशित करें.)
साथियों,
 भोजपुरी भाषा, भोजपुरी माटी और भोजपुरी माई की लाज की रखवाली के लिए उठ खड़े भाइयों! इन बेहोश, मदहोश बदमाशों को हर तरफ से घेरो! अपने समाज को अश्लीलता से और अपनी भाषा को घटियापे से मुक्त कर लो. आखिर हमें अपने बच्चों को एक साफ- सुथरा आसमान और एक सम्मानजनक मातृभाषा देना है. एक तिली की रोशनी से ये तिलमिला गए हैं. हर दिल में सचाई की आग जलाओ क्योकि ये लफंगे सचाई नहीं  सह सकते. इन्हें मिटा डालो. ये अन्धेरा उगल रहे है. ये घास-फूस हैं, फसल तबाह कर रहे हैं. ये 'डिस्को' हैं. (डिस्को उस पौधे को किसानों ने नाम दिया है जो पिछले दास सालों में एक खतरनाक पौधे के रूप में उभरा है.जो समूची फसल का नाश कर देता है.) तो ये डिस्को है दिमाग, दिल को काबू में रखते हुये ज्ञान, बुद्धि, विवेक और साहस के साथ इनको साहित्य, सिनेमा के मैदान में कुशलता से कुश की तरह  तोड़ डालो. ध्यान रहे, न तो हमें इनकी भाषा का प्रयोग करना है न इनके तरीकों का. हमें अपना स्तर नहीं छोड़ना है और इनकी बदनीयत हरक़तें छुडा ही देना है. हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति से नहीं एक प्रवृति से है. हम सचाई के पक्ष  में हैं.
एक आम इंसान होने के नाते अपने बच्चों को  एक साफ- सुथरा आसमान और एक सम्मानजनक मातृभाषा देना हमारा कर्तब्य  है. इसको बिगाड़ने वाला कोई सेलिब्रिटी हो या धन्ना सेठ उसको मुहतोड़ जवाब देना हमारा नैतिक कर्तब्य है.यही समय है ये साबित कर देने के लिए कि आप  भोजपुरी माई के मर्द बेटे है.
घेरो! घेरो! घेरो!!!!! हांका डालो. दौड़ा कर हंफा दो! इ हुंडार सब भागने न पाए. पहली बार इ सब रौशनी देखा है.
 जय विश्वमित्र की माटी! जय भोजपुर!

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

अब ना छोडब जा
ना हाथ अब जोडब जा
घेर के ओकनी अब बस मुह तुरब जा

बहुत भईल सिहुर सिहुर
बहुते भईल बात
अब त देखा देबे के बा
ओकनी के असली औकात


ना समझोगे तो मिट जावोगे ऐ अश्लीलता परोसने वालो,
कसम से , अब तुम्हारी दास्ताँ भी ना होगी दास्तानो मे.

जय भोजपुरी