बुधवार, 3 नवंबर 2010

इस दीवाली फूलवारी में चंदा जोत जलाये

घर का मन और घर मन का जगमग जग हो जाये
सूरज की किरने आँगन में दीपक राग सुनाये .

चारदीवारी चौखट देहरी तारों से सज जाये
कोने आले हीरे मोती दरपन सा दमकाए .

घनी अमावस रात आँख के काजल में ढल जाये
इस  दीवाली  फूलवारी  में  चंदा  जोत  जलाये.

आँखों के अंधियारे में सपने क्यों भरमायें
भोर कीं की कोमल बांहें अँधियारा हर जाएँ .

२१-१०-२००३ की रचना

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर!


सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल 'समीर'