सोमवार, 23 अगस्त 2010

पोस्ट कार्ड [ post card ]

धन्यबाद प्रभात जी, माया मृग जी कि आप ने लिखा.. पढ़ा और पसंद किया . कई बार कवितायेँ पढ़ने के बाद कुछ कहने की जगह कुछ विचारने की मनोदशा होती है . आपलोगों का पढ़ना मुझे पिछले २५ साल के सतत सृजन को खुद ही टाइप कर लेने के लिए  प्रेरित कर रहा है . प्रकाशन, संगठन और साहित्यिक राजनीति मैं भी कर सकता था लेकिन मुझे लिखने से लगाव था. अगर प्रकाशक द्वारा  सिर्फ  एक किताब की रायल्टी बिलकुल  (बिल्कुल) सही दे दी जाये तब भी लेखक की जिन्दगी लिख कर गुजर सकती है. कीमत कम होगी, किताबें पढने वालों के लिए लिखी जायेंगी तो प्रकाशक को भी पचास गुना ज्यादा फायदा होगा जैसा मराठी, कन्नड़ , बंगला या अंगरेजी सहित तमाम आदि आदि  भाषओं में है. मगर हिंदी में परिदृश्य अलग है . हिंदी के लेखक से पचहत्तर साल की उम्र तक प्रकाशक ये उम्मीद करता है की तुम इस बात पर प्रसन्न रहो की तुम्हारी किताब छाप दी  गई है ! हाँ !
समय बदल गया है ; कोई विकल्प निकल आएगा जैसे की एक अद्भुत विकल्प ब्लॉग है .
पुनः धन्यबाद !

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!