विकास के नाम पर
भवनों के बीच
उग आते पहाड़ों ने
कविताओं का नुकसान किया है.
मेरी खिडकियों के बाहर की हरी जमीन
मेरा चित्रपट
जहाँ देखी सफ़ेद बगुलों की पाँत, मेला, बारात ;
जबसे वह खुला उद्यान
भवन के नाम कुर्बान होना शुरू हुआ है
मेरी कविताओं का
बड़ा नुकसान हुआ है.
ब्लोग्ग पर, वाल पर
कूड़ा लिख रहा हूँ.
पुरानी कविताओं में अर्थ ढूंढ़ रहा हूँ.
मेरी खिड़की के बाहर
एक चौदह मंजिली इमारत उग आई है,
जिसने छीन लिया है
हमारा खिड़की भर आसमान
और बिना आसमान के
कहाँ लिखूं मैं कवितायेँ ?
अनुपम
1 टिप्पणी:
और बिना आसमान के
कहाँ लिखूं मैं कवितायेँ ?
संवेदनशील प्रश्न!
सुन्दर कविता!
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