रविवार, 6 फ़रवरी 2011

सपनों को गर्माहट देने में मददगार है बम्बई !


जब सारा नगर सो गया था
मै अँधेरे से आँखें मिलाये जाग रहा था
अँधेरा मेरे कमरे में उजाला उलीच रहा था
सोये हुये नगर में मेरा कमरा रेल की भट्ठी बना हुआ था
जैसे की दुनिया के और भी नगरों में कवियों की आँखें;
जागती आँखें
नींद की प्रहरी बनी होंगी ;
मै जाग रहा था

और जाग रही थी बम्बई !

सपनों को गर्माहट देने में मददगार है बम्बई !