अफ़सोस नहीं कि हीरे की तलाश में मैंने राह चलते पत्थरों को उठाया
अपनाया
घर ले आया
सँजोया
उन्हें पाया
खोया
अफोसोस नहीं कि हर पत्थर में मुझे हीरे की सम्भावना दिखी.
ह्रदय की निसैनी पर
नज़र की छैनी से
तराश देने की कोशिश की -
कुछ तो निखर गए
कुछ बिखर गए
कुछ टूट गए
कुछ रूठ गए
कुछ बहुत पीछे छूट गए .
मैंने अनुभव से जाना कि हर पत्थर में एक हीरा है,
जिन्हें उन आँखों कि तलाश होती है
जो उनके हीरेपन को बूझ ले.
कविता सी ये पंक्तियाँ
महाकवि के काव्य को समर्पित -
"मुझे भ्रम होता है कि हर पत्थर में एक हीरा है
हर छाती में विमल सदानीरा है."
( मुझे कदम कदम पर, मुक्तिबोध)
अनुपम
( २९-०६ - २००८ , नाय गाँव, )
"मुझे भ्रम होता है कि हर पत्थर में एक हीरा है
हर छाती में विमल सदानीरा है."
( मुझे कदम कदम पर, मुक्तिबोध)
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