घर का मन और घर मन का जगमग जग हो जाये
सूरज की किरने आँगन में दीपक राग सुनाये .
चारदीवारी चौखट देहरी तारों से सज जाये
कोने आले हीरे मोती दरपन सा दमकाए .
घनी अमावस रात आँख के काजल में ढल जाये
इस दीवाली फूलवारी में चंदा जोत जलाये.
आँखों के अंधियारे में सपने क्यों भरमायें
भोर कीं की कोमल बांहें अँधियारा हर जाएँ .
२१-१०-२००३ की रचना
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