दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल के कुछ शेर
मत कहो आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है .
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है .
सूर्य हमने भी न देखा है सुबह से
क्या करोगे सूर्य का क्या देखना है.
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