क्योंकि कविता अब उतनी ही देर सुरक्षित है
जितनी देर कसाई के ठीहे और गंड़ासे के बीच
बोटी ,
इसलिए कविता पर बहस शुरू करो और
शहर को अपनी तरफ घुमा लो!
सुदामा पाण्डेय धूमिल
गुरुवार, 12 अगस्त 2010
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