बुधवार, 14 मार्च 2012

Your Eyes Are ……!


Your Eyes Are ……!
(First Published on Facebook)
14-3-12 
Your eyes are
Paintings of Maithili Art !

Recharge me
With your half open eyes…..
Dr.AnupamOjha

You came like a dark neon light
In a noon of mid spring
And blossomed as moon of
My limited sky;
All the nights toured in to pieces:
Yellow flowers spark in your steps,
I have carefully collected them
From surface.

Where are you now?
Where are your black eyes?
Who is lucky to love them?
I will love to know;
Who will not love them?
Including me!

Re charge me
With your most beautiful words
And the words,
When they touch your leaps;
Became
 Most beautiful words.

Your words with the flavor of roses
Colors of birds;

Make musical sound
Into my ears.

Recharge me with smooth light of your heart
Through your beautiful eyes;

Your eyes are …

I have seen them several times
On canvases
In art galleries;

Your eyes are
Paintings of Maithili Art !

Recharge me
With your half open eyes…..






  




मंगलवार, 13 मार्च 2012

मै प्रसिद्ध आदमी हूँ

कुमार गन्धर्व के शिष्य और अद्भुत गायक डॉ. परमानन्द जी परसों मेरे घर आये थे. कुछ बंदिशें और गीत के टुकड़े सुनाने के क्रम में उन्होंने एक बीस पच्चीस साल पुराने गीत का मुखड़ा सुनाया तो मै चौक गया. वह मेरे ही एक गीत का मुखड़ा था जिसके लेखक का नाम वे नहीं जानते थे. उन्होंने कहा कि 'आपको अनुमान नहीं होगा की कितने लोगों को ये पंक्तियाँ मै एस एम् एस कर चुका हूँ!'  मै प्रसिद्ध आदमी हूँ , मुझे ऐसा अहसास हुआ. अब परमानन्द जी के पास पूरा गीत है जो उनके अगले अलबम में आएगा. फ़िलहाल आप भी मुखड़ा देख्निये -
किस कंधे पर सिर रक्खूं मै, हर कंधे का जख्म हरा है 
किस से मन को बात कहूँ मै, सबका मन बिखरा-बिखरा है. 
शुभ दिन.

शनिवार, 10 मार्च 2012

कविता


अब तुम खुश हो न ? 
अनुपम
यह सही है की तुम इश्तेमाल हो गई किसी के द्वारा 
लेकिन मेरे लिए बहुत सही हुआ ;
(तुम्हारा दिमाग दूसरे के विचार
और जुबान दूसरे के शब्द ढो रहे थे )
मै लौट गया अपनी सीप में 
जो मेरा घर है 
और ठंढी, निष्प्रभ आँखों से 
इस जगत का आकलन करते हुए मैंने पाया कि
मोती बनाना मै भूलने लगा था
जिसे तुम्हारी जरा सी चोट ने हरा कर दिया.
(बाहर तेज धूप थी 
और फूल थे 
मगर तुम न थी )

अब 
मुझसे अधिक ठंढा आदमी 
नहीं मिलेगा कहीं.
अब तुम खुश हो न ? 

भोजपुरी सिनेमा एक पड़ताल

निर्देशक की डायरी २७  
भोजपुरी सिनेमा एक पड़ताल 
                                      डॉ अनुपम                            

पिछले एक दशक के भोजपुरी सिनेमा और संगीत को अश्लील की संज्ञा दी जाती है. हालाकि इसने सफल व्यवसाय भी किया है और अपने सितारे भी पैदा किये हैं. इसके पास अपना फिक्स दर्शक और सिनेमा हॉल हैं. इसके पास जो नहीं है उसे सम्मान कहा जाता है. मिडिया इसकी पहचान को सम्मान के लायक नहीं समझती. इसे छिछला, घटिया, सस्ता, सब्सीटयूट ऑफ़ ब्लू फिल्म आदि संज्ञा दी जाती है. लगभग हर तरफ से एक बात पर सभी सहमत हैं कि भोजपुरी सिनेमा और संगीत ने भोजपुरी संस्कृति को डिस्टर्ब किया है. लगभग हर पत्रकार ने भोजपुरी सिनेमा को दोषी माना है और 'भोजपुरी समाज' को क्लीन चिट दिया है. 
भोजपुरी सिनेमा और संगीत पर एकतरफा प्रहार तो बहुत किया जा चुका कि ये दोनों उस समाज को, उसकी संस्कृति को भ्रष्ट कर रहे हैं. दूसरे पहलू से भी एकबार सोचना चाहिए- यह भी तो हो सकता है कि ये संगीत और सिनेमा उसी समाज के मन के यथार्थ कि छाया हों?  भोजपुरी समाज कि दमित वासना और जहालत ही कामुक सिनेमा और संगीत के रूप में फूट पड़ा हो? आखिर इसको लिखनेवाले, बनाने और देखनेवाले सब तो भोजपुरी ही हैं या भोजपुरी से प्रेम करनेवाले ?
राजकमल चौधरी कहते हैं कि 'प्यार और वासना मर जाते हैं लेकिन करुना कभी नहीं मरती.'
प्यार और वासना, इर्ष्य और आक्रोश इन सबकी भोजपुरी में काफी अभिव्यक्ति हो चुकी है. अब करुणा और मैत्री पर थोडा ध्यान दिया जाए तो भोजपुरी सिनेमा सम्मान की भागीदार हो जाएगी. यहाँ तक आने के लिए भोजपुरी सिनेमा ने जो भी रास्ता अपनाया उसपर रिसर्च होना चाहिए लेकिन फ़िलहाल अच्छी फिल्मो के लिए अनुकूल समय है.   

मंगलवार, 6 मार्च 2012

शिल्पी और कलाकार



निर्देशक की डायरी २६    अनुपम 
शिल्पी और कलाकार 
'आमतौर से दुष्ट और घमंडी लोग मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं.'  
 कोई भी कला विद्यालय कलाकार पैदा करने का दावा नहीं कर सकता. अगर ऐसा होता तो हर म्यूजिक स्कूल हर साल हजारों भीमसेन जोशी और शुभा मुदगल पैदा कर देता. या फिल्म स्कूल और एक्टिंग स्कूल भी हर साल सैकड़ो कलाकार पैदा कर देते. दरअसल ये संस्थान शिल्पी तो बना सकते हैं कलाकार नहीं. कलाकार तो आपके भीतर से ही पैदा होता है. शिल्पियों में कला के प्रति वाही सम्मान भावना नहीं होती जो कलाकारों की पूंजी होती है. समझौतों से हासिल हैसियत से शिल्पी लोग अक्सर अपने आप को कलाकार समझ लेते हैं. हलाकि जीवन भर वे कलाकार के आत्मसम्मान को समझ नहीं पाते और अपने झूठे अभिमान में फूले रहते हैं. कलाकार को अपने भीतर से आकर देने के लिए बहुत आत्मबल चाहिए क्योंकि कबीर के शब्दों में - ' यह तो हांड़ी काठ की चढ़े न दूजी बार.' बाहरी चमक से चौंधियाने की जगह अपने भीतर तलाशिये कला की रोशनी, चमक.
 शुभ दिन. 

सोमवार, 5 मार्च 2012

ग़ज़ल

ग़ज़ल 
थोड़ा हिसाब में मै आया, अच्छा हुआ 
मेरी किताब में वो आया, अच्छा हुआ.
कभी तो आना ही था उसको मेरे पास 
मेरे ख़राब में वो आया, अच्छा हुआ.
मै उसे गंगाजल समझ के पी गया 
मेरी शराब में वो आया, अच्छा हुआ.
बड़ी तलाश थी स्वरकार को आकार की 
वो एक साज हो के आया, अच्छा हुआ. 
उसके आने में कोई खास बात है अनुपम 
वो खासमखास हो के आया, अच्छा हुआ.
 अनुपम

रविवार, 4 मार्च 2012

लिखना


निर्देशक की डायरी २५  
लिखना
                                                                   डॉ अनुपम 
लिखना मेरी मजदूरी है, इसके लिए किसी प्रेरणा की कभी आवश्यकता नहीं हुई. ज्यादातर मै आत्म प्रेरणा से लिखता हूँ. मै कहानियों को, विचारों को, स्क्रिप्टों को वर्षों मन ही मन गुनता रहता हूँ. नोट्स लेता रहता हूँ और एक बैठक में लिख डालता हूँ एक दिन लगे या २१ दिन.यथार्थ ये है की मै अनुकूल परिस्थितियों का इन्तजार करता हूँ. कई बार फिल्मडम की महत्वकांक्षी प्रेरणाएं उनका अबोर्शन करा सकती हैं.
 दूसरी प्रक्रिया जो मै अपनाता हूँ, वह है हर रोज एक खास समय तक चार या पांच पेज लिखना, कुछ समय बाद किताब हाथ में होती है.

"एन्जॉय दिज सीक्रेट्स ऑफ़ राईटिंग.
दो फेसबुक स्टेटस -
'हाजी अली जाने के समुद्र पथ में संसार के सबसे डिजाइनर भीखारी दीखते हैं. बनारस के संकट मोचन के भीखारी उनके सामने गिनती में नहीं आते लेकिन दशाश्वमेध से ज्यादा दयनीय भीखारी विश्व में नहीं मिलेंगे. भारत में भीख व्यवसाय को स्वीकृति है. उत्तम खेती, माध्यम बनिज, अधम चाकरी, भीख निदान. हमारे यहाँ निदान पर ही ज्यादा ध्यान दिया गया है.'
'स्थान विशेष में वस्तु विशेष नहीं हो तो सूअरों को न्योता नहीं देना चाहिए.' श्रीलाल शुक्ल, राग दरबारी. भोजपुरी के जिस मुहावरे का यह हिंदी संस्करण शुक्ल जी ने किया है, उसको आप जानना चाहेंगे? आपकी सुरुचि को धक्का तो नहीं न लगेगा? "गांड़ी में गुह न सूअर के नेवता". यानि 'स्थान विशेष में वस्तु विशेष नहीं हो' तो किसी को आमंत्रित नहीं करना चाहिए. इससे उसका अपमान होता है. समय ख़राब होता है. उसका पैटर्न ऑफ़ लाइफ बिगड़ता है. जी, जनाब.

कविता


कविता
प्रथम प्रकाशन फेसबुक पर, ४-३-१२ )
मै बहुत डरता था 
                                                    अनुपम 
मै अत्यंत विनम्र आदमी से डरता हूँ 
अत्यधिक सात्विक से सावधान रहता हूँ 
मै अतिशुद्ध पर विश्वास नहीं करता हूँ 
कला की आवश्यकता से अधिक सात्विकता 
पर संदेह करता हूँ 

यह सही है की इस वक्त सही आदमी 
भीड़ में अकेला छूट जाता है :
और 
पीछे से आती रैली के रेले में गुम हो जाता है.
बचे रहना है अपनी सादगी में 
अगर बचाए रखना है पृथ्वी को
सहज आदमी मुझे अच्छे लगते है
जो सिर्फ होते है
हर घड़ी ऐंठते नहीं 
विनम्रता के आवरण में पैठते नहीं .

इसीलिए....