नीलकमल के नोट्स से ---
'तो कविता भी उसी नारियल के पानी जैसी चीज़ होनी चाहिए ।
कहने का अर्थ यह कतई नहीं है कि कवि कोई जादूगर होता है । ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है । लेकिन कविता की रचना प्रक्रिया में कहीं न कहीं वह बात अवश्य है कि "देयर इज़ समथिंग मैजिकल इन इट" । आखिर क्यों बड़े से बड़े कवि के लिए भी हर बार बड़ी कविता लिखना कठिन होता है । क्यों किसी बिलकुल नए कवि की एक कविता वह बात कह जाती है जो पहले किसे ने उस ढंग से नहीं कही । क्यों आखिर , "कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयाँ और" । बहुत सम्भव है कि कवि होना व्यक्ति का खुद का चुनाव न हो बल्कि कविता ने स्वयं ही उसे अपने लिए चुन लिया हो ।'(नील कमल, कविता की रचना प्रक्रिया.)
कविता की रचना प्रक्रिया पर नीलकमल का अद्भुत आलेख पढने के बाद हाल ही में लिखी इस कविता को प्रकाशित करना जरूरी हो गया. कविता की रचना प्रक्रिया पर मैंने कई कवितायें लिखी हैं
और उस खास बात को पकड़ लेने की कोशिश की है.'निज में बसने कस लेने' की कोशिश की है और भी हैं लेकिन यह दो सप्ताह पहले की रचना है. लीजिये, कविता की रचना प्रक्रिया के कठघरे में मै भी हाजिर हूँ .कविता
मै नहीं लिखता ... अनुपम
( १२-०९-२०१, मुंबई )
नहीं भाई नहीं, मैं कवितायें नहीं लिखता
(पटकथाएं नहीं लिखता)
मेरी खुशियाँ तो कहीं गाँव घर में रह गईं
मेरा आनंद बनारस की गलियों में खो गया.
नहीं, भाई नहीं,
मै नहीं लिखता...
कवितायें मुझे लिखती हैं
मेरे एकांत में खलल डालती हैं
कहानियाँ मुझे चुनती हैं,
चरित्र मुझे आकर मांगते हैं .
मै गया था रवीन्द्र नाथ टैगोर के पास
लिओ तोलस्तोय के पास
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के पास ;
गंगा जमुना की रेती छानता रहा वर्षों
काव नदी की छिछली
गोमती की गहरी लहरों को पढता रहा
किनारा बन पीता रहा नदियों को
सदियों को
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
और
गजानन माधव मुक्तिबोध
का संग छोड़
मै धूमिल के साथ एक पेड़ के नीचे बैठ गया.
धूमिलकहीं से एक कील खोजकर लाया
एक झंवाये टुकड़े से
वह अपनी टूटी हुई चप्पल गांठने लगा,
मुझे मोचीराम दिखा
उसके साथ मै रैदास के जूतालय में चिलम फूँक आया
सभी हकीम लुक्मानो से मिल आया,
और अंत में कबीर से पता चला -
इसकी कोई दवा नहीं,
जब इन्होने ही तुम्हे चुना है
अभिशाप हो या वरदान
मै नहीं लिखता
इनका चाकर हूँ मै
नहीं दीखता चक्कर मेरे पांवों में
मेरे भावों में
विचारों के जाल में नहीं टिकती नन्ही मछलियाँ
जो मुझे पसंद हैं...
नहीं भाई नहीं
मै नहीं ...
(सिर्फ वही) .
1 टिप्पणी:
सघन-वैचारिक अभिव्यक्ति...
एक टिप्पणी भेजें