निर्देशक की डायरी 3
फिल्म इंडस्ट्री में अच्छे लेखक नहीं है - अमिताभ बच्चन.अब लगता है की लेखक खोजने फिल्म इंडस्ट्री से बाहर ही जाना होगा- राहुल बोस.
सिर्फ पिछले एक सप्ताह में बड़े और गंभीर फिल्म कर्मियों से लेकर दर्जन भर छूटभैयों ने भी यही बात दोहराई हैं. इस बात को मै काफी अरसे से सुनता आ रहा हूँ. सन २००० में इंडिया डे एंड नाईट में मैंने आमिर खान का सन्दर्भ रखकर 'हिन्दी सिनेमा में पटकथा की व्यथा' नाम से एक सारगर्भित लेख लिखा था. नए सिरे से कुछ बातें कह रहा हूँ.
फिल्म निर्देशक मीडिया है न की लेखक मीडिया आज ये सब जानते हैं.
चलिए माना की लेखक नहीं हैं. तो क्या हुआ ? निर्देशक हैं न ?
या वास्तव में निर्देशक नहीं हैं ? और प्रोड्यूसर भी नहीं हैं ? क्योकि "हमारी फिल्म इंडस्ट्री में सबके पास एक कहानी होती है लेखक को छोड़कर " - भगवती चरण वर्मा ने १९५० में लिखा था ! आज भी हम वही हैं!
निर्देशक, अभिनेता, संगीत, कला सबके महत्त्व और रचनाशीलता को सब पहचानते और सराहते हैं. लेकिन क्या अबतक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में प्रोड्यूसर के महत्त्व को समझने की कोशिश की गई है? क्या कभी इस पर विचार किया गया है की 'प्रोड्यूसर मे बी अ क्रिएटिव पोस्ट'. अक्चुअली प्रोड्यूसर इज अ क्रिएटिव पोस्ट इन एंटायर फिल्म वर्ल्ड. लेकिन हमारी फिल्म इंडस्ट्री में जो भी पैसा लगाता है वह प्रोड्यूसर होता है और जो भी पैसा या स्टार ला सकता है वह डाइरेक्टर होता है. यह आम प्रचलन है. हर साल आठ सौ हजार फिल्मों में से नब्बे प्रतिशत अगर हम औसत सिनेमा बनाते हैं तो इसका कारण राइटर नहीं है ! क्यों की राइटर को डाइरेक्टर और प्रोड्यूसर अपोइन्ट करते हैं. राइटर भी म्यूजिक डाइरेक्टर और फाईट डाइरेक्टर या आर्ट डाइरेक्टर की तरह फिल्म का एक सहकर्मी होता है न की मेकर ?
हमारी इंडस्ट्री में ओरीजिनल डाइरेक्टर की भारी कमी है; जिनके पास अपनी कोई सोच, कोई आईडिया हो जिसे डेवलप करने के लिए सच्चे लेखक की जरुरत हो. हमारे यहाँ नकली डाइरेक्टर हैं जिन्हें किसी बाहरी फिल्म को हिंदी में छापना होता है. उनमें नए विषय को धारण करने की शक्ति नहीं होती. उनके पास गर्भ नहीं होता जहाँ विचार विन्दु को धारण कर सकें. ऐसे महत्व के रोगी सो काल्ड डाइरेक्टर लोग मुंशी नुमा लोगों को खोजते है जो चोरी में सफाई से साथ दें. इसीलिए हमारी फिल्म इंडस्ट्री का सर्वप्रिय सब्जेक्ट आजतक अपराध बना हुआ है.अपराध और हिंसा तो जैसे एंट्रेंस एक्जाम है जिसको पास करके ही कोई अभिनेता बन सकता है. कमाल की इंडस्ट्री है भाई नब्बे प्रतिशत नकल पर चल रही है और चकाचक चल रही है!!
फिल्म लेखक का मिडिया नहीं है तो यहाँ लेखक नहीं हैं . इसमें क्या आश्चर्य है. गट्स वाले अभिनेता तो है ना जो सिर्फ ओरीजिनल स्क्रिप्ट करते हैं ? जो धंधे पर ही नहीं उतर गए हैं? लेखक कभी नहीं थे और हमेशा थे उन्हें फिल्म लेखन के लिए निर्देशक या प्रोड्यूसर आमंत्रित करते हैं. क्या उम्मीद करते हैं आप की कोई भी लेखक फिल्म इंडस्ट्री में आकर दुबारा से लेखक बनने का संघर्स शुरू कर दे ? अभिनेता और निर्देशक के लिए जा जाकर अपने आप को इंट्रोड्यूस करना सही है क्योंकि वे फिल्म माध्यम से ही अपना परिचय दे सकते हैं लेकिन एक लेखक तो साहित्य, पत्रकारिता आदि माध्यमों से भी अपनी योग्यता का संकेत दे सकता है. लेखक को हमेशा बुलाया जाना चाहिए. यह बुलाना भी तभी संभव है जब निर्देशक और प्रोड्यूसर भी जागरूक और रचनात्मक हों ! क्या ऐसे निर्माता हैं सर ?
बी आर चोपड़ा ने कमलेश्वर को फिल्म लिखने के लिए बुलाया और सिखाया भी. वे विमल राय थे जिन्होंने नवेंदु घोस, गुलजार, बासु चटर्जी, बासु भट्टाचार्य और न जाने कितने लेखकों, निर्देशकों, कलकारों को संरक्षण दिया.
मै बच्चन साहब से पूछना चाहता हूँ की आपकी पीढ़ी तो भाग्यशाली थी जब ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे लेखक निर्देशन कर रहे थे. हमें क्या मिला है.
राहुल बोस तो खुद बहुत बढ़िया लेखक है . मैंने उनकी एक स्क्रिप्ट पढ़ी थी. उन्होंने लिओ तोल्स्तोय की किताब अन्ना कारेनिना को हिंदी सीरियल के लिए रूपांतरित(Adapt ) किया था. कमाल का भारतीयकरण किया था इन्होने. तब मै एक टीवी चैनल में काम करता था. मै इस के बनने के पक्ष में था. किन्ही कारणों से एक आला अधिकारी राहुल के पक्ष में नहीं था. मैंने इसी बात पर स्क्रिप्ट सलेक्शन का काम छोड़ दिया. बाद में नौकरी छोड़ दी. मै राहुल से पूछना चाहता हूँ की वे खुद इतने अच्छे लेखक हैं, आपको कितनी फिल्में औफर होती हैं ?
तो मामला ये नहीं है की लेखक नहीं है; हुजूर! प्रोड्यूसर और निर्देशक नहीं है जैसा की मै समझ रहा हूँ.
1 टिप्पणी:
बात सही है ,लेखक ,निर्देशक ,निर्माता अपनी अपनी खोली में बंद हैं ,जब वे मिलते हैं ,उनकी टयूनिंग बनती है तो आर्केस्ट्रा भी मजेदार बनती है ।
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