कविता
देह नई हो गई
अनुपम , मीरा रोड, ३-२-२०१२
गले मिले
देह नई हो गई
मन को मिला आराम;
वाक्य पुराना
सत्य भी
सहज ही
सुंदर मिलना तुम्हारा
गले
गले मिले
मिले
गलने के लिए
ढलने के लिए
ढलने के लिए
सांचों में
नए आकाश के.
.
विश्वास के .
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