एक और कविता
अनुपम
मैंने तुम्हे जल की तरह
अपनी आँखों में भर लिया .
सितार के सभी तार सुर में कर लिए
मैंने तुम्हे अबीर रंग की तरह
अपनी आँखों में भर लिया
तुम्हारी आवाज को स्वरों की तरह
कंठ से लगा लिया है.
गीत सुनाने से ठीक पहले एक आखिरी नजर
मै साज और समाज को देखता हूँ
सब सही है
तानपूरा और तान, सब सही है!
तब मैंने तुम्हे अपनी आँखों में भंग की तरह भर लिया
गुलाल की तरह तुम्हे दिशाओं में उछाल दिया
और समूचा आसमान
अपनी आँखों में भर लिया
मैंने देह को अदेह कर दिया.
मैंने तो खुद की सुनी.
तुमने सुना?
और आपने बन्धु!
मेरे बन्धु!
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