उलाहना
अब
अपरिचित होने की हद तक हम लोग
संपर्क में नहीं हैं.
एक थे तुम,
एक था मै - एक थे हम !
तुम गए की दिल मेरा राह - राह हो गया.
दिल तबाह हो गया...
अनुपम
(१९८८, बनारस )
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