रविवार, 24 जुलाई 2011

किसी साल बारिश में लिखे गए दो गीत..

 बारिश में



आ रहे है खेलकर फुटबॉल बारिश मेंबादलों की उड़ रही गुलाल बारिश में .
दिल के तट को छू रही तेरी दुआएं है
तेरे रंग की ओढ़ ली रुमाल बारिश में .

गरजते  है तब बहुत कठोर लगते हैं
बरसते है तो बजे हैं ताल बारिश में .

ये मिलन धरती गगन का गजब है, यारो !
हम भी भीगेंगे इस साल बारिश में .



पाओस आल ..


जाल खोलते हैं मछुआरे
 पाल खोलते हैं मछुआरे
पहली मछली की तड़पन से साल खोलते है मछुआरे !

बीज ढो रहे हैं बनिहारे
बीज बो रहे है बनिहारे
इस मौसम में किस मौसम के बीज हो रहे हैं बनिहारे ?

घास गढ़ रहे हैं घसियारे
घास पढ़ रहे हैं घसियारे
बरसा से सरसी धरती कि साँस पढ़ रहे है घसियारे .....

पाल खोलते हैं मछुआरे .

कोई टिप्पणी नहीं: