गुरुवार, 31 जुलाई 2008

गजल के तीन शेर अनुपम

घर से निकल आए है घर ढ़ूंढ़ रहे हैं

इस शहर में हम अपना शहर ढ़ूंढ़ रहे हैं ।

कुछ गीत कुछ किताबें कुछ धड़कते अहसास

किस दिल में इन्हे रखें जगह ढ़ूंढ़ रहे हैं ।

आदत सी हो गई है कुछ ढ़ूंढ़ते रहने की

तुम मिल गए हो और तुम्हे ढ़ूंढ़ रहे हैं।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अच्छी गजल है, लेकिन खोज गलत है दरअसल जिस चीज को जिस जगह खोज रहे हो वह वहाँ पायी ही नहीं जाती।
तुम्हारा दुश्मननुमा दोस्त
राजू

कुमार मुकुल ने कहा…

आदत सी हो गई है कुछ ढ़ूंढ़ते रहने की

तुम मिल गए हो और तुम्हे ढ़ूंढ़ रहे हैं।
- अच्‍छी लगी पंक्तियां